Wednesday, 16 August 2023

पारस्परिक सहयोग

(चित्र-लेखन- विधाता छंद)
पारस्परिक सहयोग 
खटे तपती दुपहरी में,चलाता रात दिन रिक्शा।
बड़ा खुद्दार है बाबा,न माँगे है कहीं भिक्षा।।
सवारी भी कहाँ है कम,उढ़ाये है उसे छाता।
सफ़र दुर्गम मगर वो भी,बड़ा आसान हो जाता।। 
30/4/23                           ~अजय 'अजेय'।

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