सबका साथ : सबका विकास
(चौपई छंद)
पंजा कहीं न फटके पास।
बिखरा दीखे तिनका घास।।
परिजन ही जब खासम-खास।
कैसे सबका होय विकास।।
कहते खरी खरी हैं बात।
देते हैं जो सबका साथ।।
उतरे जैसे ही कोविन्द।
मुर्मू ने पायी सौगात।।
पूरण होती सबकी आस।
सब मिलकर जब करें प्रयास।।
घोर विरोधी बने मुरीद।
मन की बातें आती रास।।
25/7/22 ~अजय 'अजेय'।
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