Sunday 13 October 2019

चित्र लेखन (शक्ति छंद) - मेहनत की देवियाँ



शक्ति छंद - मेहनत की देवियाँ...

का कहूँ मैं, देख कर यह शक्ति रूपा।
पालती है पेट में जो, निज सरूपा।।
मेहनत ही बन गयी है भोज इनका।
देवियाँ कह भेंट कर दूँ दीप-धूपा।।

१२/१०/१९          ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 9 October 2019

शिकायतों का दौर

शिकवों का दौर...
(संशोधित ९/१०/१९)

शब भर लिखी हमने, शिकवा-ए-फे़हरिश्त,
और होश में आते आते, सहर हो गयी।
फिर टूट के गिरे वो, बाहों में मेरे इस कदर,
फेहरिश्त खुद ही धुल के, बेनज़र हो गयी।।

 ०९ अक्तूबर १३             ~अजय 'अजेय'।

Sunday 6 October 2019

चित्र लेखन (विधाता छंद) - दिखावा

विधाता छंद - दिखावा...    👉

(१)
जहाँ सब साफ़ होता है,वहाँ झाड़ू घुमाते हो,
सिर्फ फोटो खिंचाने के,लिए नाटक रचाते हो।
सही करनी सफाई हो,चले आओ पटरियों पर,
लगा अंबार कूड़े का,यहाँ हरगिज़ न आते हो।।

(२)
तमाशा,खेल, ये सारा,दिखाकर फूट लेते हैं,
हिला कर झूठ की कूँची,प्रशंसा लूट लेते हैं।

नहीं हमको शिकायत है किसी की नेक नीयत से,
मगर झूठे को* अदरक की तरह भी कूट देते हैं।।
(*मात्रा पतन)


०५/१०/१९                    ~अजय 'अजेय'।

चित्र लेखन (विधाता छंद) - मजबूत इरादे

विधाता छंद - मजबूत इरादे ...
                                         👉

चला है पूत ये देखो, उठाये माथ पर बस्ता।
भरा है जोश से बालक, करेगा पार सब रस्ता।
जगा ले जीत का जज्बा, डिगा उसको नहीं सकते।
भले कितनी कठिन हों राह, या हालात हों खस्ता।।


०४/१०/१९                     ~अजय 'अजेय'।

गीतिका छंद - बात अब कहना जरूरी

बात अब कहना जरूरी...
(लाललाला, लाललाला, लाललाला, लालला)
[१]
नासमझ बन आज तक, पुचकारते जिनको रहे,
देख तो लो चाहते वे, राज से किसको रहे।
नींद से जगना जरूरी, हो गया अब दोस्तों,
बात अब कहना जरूरी, हो गया है दोस्तों।।
[२]
नैन जब उनके झुके तो, छूरियाँ दिल पर चलीं,
होंठ होंठों से मिले तो, खिल गयी दिल की कली।
छू गयी थी जो हवा, उस रोज उनकी देह को,
लौट फिर आती, मचा जाती, जहन में खलबली।।

०६/१०/१९.                      ~अजय 'अजेय'।        

दोहा-यातायात बनाम मोबाइलाचार

यातायात बनाम मोबाइलाचार...
एक मित्र द्वारा भेजे गए एक विडियो को देख कर मन में कुछ भाव जगे जिन्हें कुछ दोहों के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ...

(दोहा)
मोबाइल को जेब धर, घर से निकलो यार।
चलत-चलत ना बात हो, चीख रही सरकार।।

ऐसी आफ़त कौन सी, रुकते नहीं सवार।
टेढ़ी मुंडी करि करें, बात, घात, बेकार ।।

रख विधान सब ताक पर, लाँघत हैं आचार।
अपने भी घाती बनें, सहचर पर भी वार।।

बेवकूफ हैं कम नहीं, है इनकी भरमार।
खोजत निकलो एक को, मिल जायेंगे चार।।

२३-८-१९                   ~~~अजय 'अजेय'।