Sunday 31 March 2024

करगिल विजय दिवस

 करगिल विजय दिवस पर...

(कुण्डलिया छंद)


आ धमके नापाक अरि, कर करगिल में घात।

उन्निस सौ निन्यानबे, बात हुई यह ज्ञात।।

बात हुई यह ज्ञात,  इरादे नेक न उनके।

छेंके आ कर बँकर, छल से ताने बुनके।।

भागे पूँछ दबाय, गिरे जब गोले जमके।

धर दोज़ख की राह, गये जो थे आ धमके।।

26/7/23           ~अजय 'अजेय'।

चंद्रयान-3

 सफल भारतीय अभियान : तीसरा चंद्रयान

(चंद्रयान-3)


आज देश ने लिखी चाँद पर,

स्वर्णिम एक इबारत है।

"मामा" के कंधे पर चढ़ कर,

खेल रहा नव-भारत है।।


"सोमनाथ" के निर्देशन में,

भारत ने इतिहास रचा।

चंद्रयान-3 के लैंडर,

"विक्रम" ने पद चाँद रखा।।


हर्ष लहर में झूम उठा है,

भारत का कोना कोना।

नगर-नगर में धूम मची है,

बँटे मिठाई का दोना।।


सफल सिद्ध वैज्ञानिक अपने,

चाँद तिरंगा गाड़ दिया।

विश्व-पटल पर स्वाभिमान संग,

भारत को जय-बाण दिया।।


निकल चुका रोवर "प्रज्ञानी",

अपना खेल दिखाने को।

विचरेगा चंदा-तल पर वह,

जानकारियाँ लाने को।।


चौदह दिन के पखवाड़े भर,

घूमेगा यह विज्ञानी।

संभव कि वह तलाश ले,

प्राण-वायु, तल पर पानी।।


अंत नहीं, आरंभ हुआ यह,

दबे खजाने पाने का।

यह सुरंग का दरवाजा है,

बहुत बचा है आने का।।

23/8/23  ~अजय 'अजेय'।

मामा के घर भान्जा

मामा के घर भान्जा

(मनोरम छंद)


साँझ को जब चाँद आया,

चाँदनी पर तिलमिलाया।

लाल पीला कह रहा वह,

बोल किसको घर बुलाया।।


चाँदनी ने देख माया,

नेह से उसको बताया।

देख लो खुद ही बुलाकर,

भान्जा ननिहाल आया।।


*ज्ञान 'अवनी' ने मँगाया,*

यान पर है बैठ आया।

नाम 'विक्रम' कह रहा है,

*"भारती" का पूत पाया।।*


*चाँद मामा मुस्कुराया,*

चाँदनी को उर लगाया।

भान्जे को काँध पर ले,

घूम सारा घर दिखाया।।


1/9/23    ~अजय 'अजेय'।

कोहरे का कोहराम

कोहरे का कोहराम


सर्दी ने सिरदर्दी दे दी,

कोहरे ने कोहराम,

घर से न तुम बाहर निकलो,

वर्ना धरे जुखाम।


बचना घोर कहर से तो,

फिर सुनलो यह पैगाम,

ओढ़ि चदरिया घर में बैठो,

बोलो जय श्रीराम....


बोलो राम राम राम,

बोलो राम राम राम,

बोलो राम राम राम,

जै सियाराम जै जै सियाराम।।

 13/1/24 ~अजय 'अजेय'।।

सौ पर भारी एक

सौ पर भारी एक

(कुण्डलिया छंद)


कोशिश में सारे लगे, रोक न पायें एक।

सौ पर भारी एक है, लिये इरादे नेक।।

लिये इरादे नेक, बढ़े वह गज के जैसे।

भौंकत चलते श्वान, दूर से डरते वैसे।।

कहें अजय कविराय, रोज पीते हैं वो विष।

पाना मुश्किल पार, करें कितनी भी कोशिश।।

                   ~अजय 'अजेय'।

हे मतदाता

हे मतदाता

(रास छंद)


एक तार से गुँथे हुये तुम रहो जरा।

संगी-साथी  कथा जीत की कहो जरा।

जीव भयानक इस दरिया के वासी हैं।

धार सरित की नाप तोल कर बहो जरा।।


राजनीति के गलियारे ये जंगल हैं।

इस में पग पग पर आयोजित दंगल हैं।

नीति-हीन दल और अनगिनत निर्दल हैं।

सोम गुरू रवि आज, वही कल मंगल हैं।।


नींव बिना ही चलें उठाने महल यहाँ।

इनकी माटी उनकी टाटी जुटे कहाँ।

साड़ी टोपी सूट-बूट सब वेष अलग।

बिखरीं गठबंधन की ईँटें

जहाँ-तहाँ।

15/3/24        ~अजय 'अजेय'।

Saturday 30 March 2024

पलक बिछाये

पलक बिछाये
(विष्णुपद छंद)

गयी ठंड आयी मौसम में, थोड़ी गर्मी अब।
पायी है राहत जन मन ने, छाई नर्मी तब।।
छँटा कोहरा लगे दिखाई, देने रस्ते सब।
पलक बिछाए राहें तकते, तुम आओगे कब।। 
 8/2/23                    ~अजय 'अजेय'।