Tuesday 31 December 2019

सार छंद

सार छंद...
(१) हैपी क्रिसमस
मदिरा की मस्ती में खोकर, डोल रहे मतवारे।
हैपी होकर हैपी *क्रिसमस, बोल रहे हैं सारे।।
केक बिचारा पूछ रहा है, मेरी ग़लती का रे ?
खुद ख़ुश होकर काट देत हो, मेरी गरदन वा रे !

(२)बे बात की बात
क़ौम-धरम का जाम चखा कर, बहका रहे उवैसी।
ममता 'छी-छी' करती घूमे, हालत होती कैसी।।
पत्थर मारो, आग लगाओ, कैसी डेमोक्रैसी।
बे बातों की बात बनायें, उनकी ऐसी-तैसी ।।
२६/१२/१९                  ~~~ अजय 'अजेय'।

Tuesday 24 December 2019

दोहा छंद

दोहा छंद...

सुनो सी यम जी...

पी यम अपना कर रहे, तुम को अपना काज।
हाथ खुजाते रहो गर, नहीं करोगे आज।।

पी यम के सर देश है, शेष तिहारे नाम।
साया उसका छोड़कर, खुद भी कर लो काम।।

कहाँ-कहाँ वह खड़ा हो, कहाँ-कहाँ दे साथ।
तेरे अपने पाँव हैं, तेरे भी हैं हाथ।।

कब तक ढुलमुल चलोगे, थामे मोदी हाथ।
अपने पाँव बढ़ाइए, मजबूती के साथ।।

मोदी बैठे बीच में, दिखा रहे हैं राह।
गाँवन के तुम रहनुमा, जीतो जन की वाह।।

सेंगर जैसों से परे, रखिये सोच विचार।
यूँ लगाम कसिये तनिक, होय न अत्याचार।।


२३/१२/१९                              ~~~अजय 'अजेय' ।

Saturday 14 December 2019

चौपई छंद - दिशा की बात

'दिशा' की बात...
(चौपई छंद)
आज उठेगी फिर से लाश।
जीवन है या सूखी घास ?
जिन्ह मर्जी तेहिं फूँक दिया।
हाथ सेंकने की धरि आस।।

तुमको भेजा था उस *द्वार।
पहना कर वोटों का हार।।
बतलाना तुम मेरी बात।
तुम तो भूल गये सब यार।।

बेटी मेरी रोई आज।
पूछे कैसा है यह राज।।
निकली मैं जब घर से पापा।
देखे ताक लगाए 'बाज'।।

बिटिया मुझसे बोली बात।
उस दिन जो अंकल थे साथ।।
उनको पूछो चुप क्यों हैं।
बैठे धरे हाथ पर हाथ।।
१४/१२/१९        ~अजय 'अजेय'।  

Monday 9 December 2019

चौपई छंद

चौपई छंद 
*_(ना)पाकी _* खेल

(१)
चले न उनके कोई दाँव।
जहाँ जाँय खायें बेभाव।।
दिखा रहे अब झूठे ताव।
कहीं डूब ना जाये नाव।।

(२)
बना दिया तुझको परधान।
अब तू दे मुझको वरदान।।
मैंने पीठ खुजा दी ख़ान।
तेरी बारी है तू जान।।
०८/१२/१९  ~अजय 'अजेय'।

(३)
सुनो सुनो आई आवाज।
मौनी बाबा बोले आज।।
नरसिम्हा पर ठेली गाज।
दबे दबे कुछ खोले राज।।
०८/१२/१९    ~अजय 'अजेय'।

(४)
पप्पू जी को उभरी खाज।
चले खुजाने फिर से आज।
र डाला भारत को नँग।
बलत्कार का देकर ताज।।
०८/१२/१९  ~अजय 'अजेय'।

Thursday 5 December 2019

एक बेटी फिर मरी (रजनी छंद)

एक बेटी फिर मरी
(रजनी छंद)

हाल ऐसा हो गया हम सह नहीं पाते।
चाहते हैं हम मगर चुप रह नहीं पाते।
रोज लुटती बेटियों की अस्मिता देखी।
वेदना हिय की किसी से कह नहीं पाते।

निर्भया के पीर से पैदा हुई थी वो।

आन्दोलित हो गयी माँ भारती थी जो।
भूल कर के पीर अपनी वह गयी फिर सो।
कुंभकरणी नींद कैसे आ गयी उसको।

फिर सियासत में जरा सी सुगबुगाहट है।

हैं दिशायें सड़क पर तो भुनभुनाहट है।
एक बेटी फिर मरी तब बौखलाहट है।
सख्त होने में न जाने *क्या रुकावट है।

आ गयी है वो घड़ी जब फैसला हो ये।

जो करें अपराध उनको देश न ढोये।
हों फटाफट फैसले उनके गुनाहों पे।
दोषियों की सूलियों पर देश न रोये।

फाँसियों की डोर झट बँध जाय गरदन में।

हो नहीं देरी विधिक या व्यर्थ क्रंदन में।
पकड़ लायें  आसमाँ से या जहाँ भी हों।
हो मुखर संदेश सारा विश्व-बँधन में।

०३/१२/१९                           ~~~अजय 'अजेय'।

Wednesday 4 December 2019

दिशा का अंत (दुर्मिल सवैया)

दिशा का अंत
(दुर्मिल सवैया)

टुकड़े-टुकड़े कर के दिल के, मन को, तन को, झुलसाय गये।

इनसान नहीं, बलवान नहीं, भगवानहुँ को बिसराय गये।

छण की, पल की, तन की खुशियाँ, हथियावन को पगलाय गये।

खिलती, हँसती, उड़ती चिड़िया, धरि आगहि भूनि के ढाय गये।।

०४/१२/१९                                ~~~अजय 'अजेय'।

Sunday 1 December 2019

चित्र लेखन (दोहे) - एकता में बल

चित्र लेखन - एकता में बल...    

                                                   👉🏻

(दोहे) (१)
जरा सहारा जो दिया, छप्पर लिया छवाय।
तिनका तिनका जब जुटे, शक्तिमान हो जाय।।

एक अंगुरिया देखि के, दुश्मन डरे न भाय।
पाँच जोरि मुक्का बने, जो देखे भय खाय।।

बूंँद अकेली नीर की,  प्यास बुझा न पाय।
बू्ँद-बूँद एकत्र हो, लोटा भरि-भरि जाय।।

२९/११/१९।              ~~~अजय'अजेय'।
                                 
                     

चित्र-लेखन - माटी कहे कुँहार से...
(दोहे)

माटी कहे कुँहार से, बंद करो ये झाम।
जीना है यदि चैन से, पकड़ो दूजा काम।।

कहाँ पकाओगे मुझे, ना महुआ ना आम।
बाग बगीचे कट गये, देखन मिले न घाम।।

दीये कौन खरीदता, चीनी लड़ियाँ आम।
रखो चाक यह ताक पर, सुमिरो रक्षक राम।।

तीसी-सरसों न दिखें, खेत बन रहे धाम।
कौन जराये तेल जब, घी से मँहगा पाम।।

ऐ मालिक तज नेह मम्, लो मेरा पैगाम।
मेरी चिंता छोड़कर, कर लो शहर पयाम।।

मैं तो रज इस गाँव की, जी लूँगी हर दाम।
तुमको बालक पालने, लखो आप परिणाम।।


२/२/२०२०    ~अजय 'अजेय'

Thursday 28 November 2019

घनाक्षरी छंद - तमाशा-ए-महाराष्ट्र

(घनाक्षरी छंद में एक प्रयास)
*तमाशा-ए-महाराष्ट्र*

खतम उठा-पटक हुई महाराष्ट्र में,
कृष्ण बन ऊधो जी को कुरसी थमाई है।
देवइन्द्र-कोशियारी जी की होशियारी वाली,
जुगति-जुगाड़ कोई काम नहीं आयी है।
नट-बोल्ट कस कर तीन चक्के फंँस कर,
भेद भाव भूल सरकार बनवाई है।
सचल रहेगी ये आघाड़ी पूरे पाँच साल,
या कि इस गाड़ी ने उमर लघु पाई है।
२८/११/१९                       ~~~अजय 'अजेय'।

Monday 25 November 2019

मधु छंद - वायु विषैली

"मधु" छंद में एक प्रयास :-

वायु विषैल भई इंह भारी।
साँझ सबेर भखैं नर नारी।
दोष कहाँ इसमें सरकारी।
मानत नाहिं, जराइ पुआरी।

रोय रहे शहरी घर-बारी।
पाथर ईंट पिसे धुंइधारी।
साँस न खींच सकैं अब सारी।
खाँसत-ठाँसत बढै़ बिमारी।
25/11/19  ~अजय 'अजेय'।

चित्र लेखन (मधुमालती छंद) - रंगीन बिस्तर


चित्र लेखन
(मधुमालती छंद)

रंगीन बिस्तर लग गया।
है गाँव में उत्सव नया।
महमान आयेंगे नये।
लो गाँव सारा सज गया।।
२३/११/१९  ~अजय 'अजेय'।

*विधाता छंद* में एक प्रयास:- 

बिछाकर चादरें तकिया,लुभाने की तयारी है।
बिगड़ती बात बनने की, सभी को इंतजारी है।।
लगे जो देर तो बढ़ने लगी है, मन की आशंका।
बने सरकार या फिर से, वही बेरोजगारी है।।

२४/११/१९                    ~अजय 'अजेय'।

Sunday 13 October 2019

चित्र लेखन (शक्ति छंद) - मेहनत की देवियाँ



शक्ति छंद - मेहनत की देवियाँ...

का कहूँ मैं, देख कर यह शक्ति रूपा।
पालती है पेट में जो, निज सरूपा।।
मेहनत ही बन गयी है भोज इनका।
देवियाँ कह भेंट कर दूँ दीप-धूपा।।

१२/१०/१९          ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 9 October 2019

शिकायतों का दौर

शिकवों का दौर...
(संशोधित ९/१०/१९)

शब भर लिखी हमने, शिकवा-ए-फे़हरिश्त,
और होश में आते आते, सहर हो गयी।
फिर टूट के गिरे वो, बाहों में मेरे इस कदर,
फेहरिश्त खुद ही धुल के, बेनज़र हो गयी।।

 ०९ अक्तूबर १३             ~अजय 'अजेय'।

Sunday 6 October 2019

चित्र लेखन (विधाता छंद) - दिखावा

विधाता छंद - दिखावा...    👉

(१)
जहाँ सब साफ़ होता है,वहाँ झाड़ू घुमाते हो,
सिर्फ फोटो खिंचाने के,लिए नाटक रचाते हो।
सही करनी सफाई हो,चले आओ पटरियों पर,
लगा अंबार कूड़े का,यहाँ हरगिज़ न आते हो।।

(२)
तमाशा,खेल, ये सारा,दिखाकर फूट लेते हैं,
हिला कर झूठ की कूँची,प्रशंसा लूट लेते हैं।

नहीं हमको शिकायत है किसी की नेक नीयत से,
मगर झूठे को* अदरक की तरह भी कूट देते हैं।।
(*मात्रा पतन)


०५/१०/१९                    ~अजय 'अजेय'।

चित्र लेखन (विधाता छंद) - मजबूत इरादे

विधाता छंद - मजबूत इरादे ...
                                         👉

चला है पूत ये देखो, उठाये माथ पर बस्ता।
भरा है जोश से बालक, करेगा पार सब रस्ता।
जगा ले जीत का जज्बा, डिगा उसको नहीं सकते।
भले कितनी कठिन हों राह, या हालात हों खस्ता।।


०४/१०/१९                     ~अजय 'अजेय'।

गीतिका छंद - बात अब कहना जरूरी

बात अब कहना जरूरी...
(लाललाला, लाललाला, लाललाला, लालला)
[१]
नासमझ बन आज तक, पुचकारते जिनको रहे,
देख तो लो चाहते वे, राज से किसको रहे।
नींद से जगना जरूरी, हो गया अब दोस्तों,
बात अब कहना जरूरी, हो गया है दोस्तों।।
[२]
नैन जब उनके झुके तो, छूरियाँ दिल पर चलीं,
होंठ होंठों से मिले तो, खिल गयी दिल की कली।
छू गयी थी जो हवा, उस रोज उनकी देह को,
लौट फिर आती, मचा जाती, जहन में खलबली।।

०६/१०/१९.                      ~अजय 'अजेय'।        

दोहा-यातायात बनाम मोबाइलाचार

यातायात बनाम मोबाइलाचार...
एक मित्र द्वारा भेजे गए एक विडियो को देख कर मन में कुछ भाव जगे जिन्हें कुछ दोहों के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ...

(दोहा)
मोबाइल को जेब धर, घर से निकलो यार।
चलत-चलत ना बात हो, चीख रही सरकार।।

ऐसी आफ़त कौन सी, रुकते नहीं सवार।
टेढ़ी मुंडी करि करें, बात, घात, बेकार ।।

रख विधान सब ताक पर, लाँघत हैं आचार।
अपने भी घाती बनें, सहचर पर भी वार।।

बेवकूफ हैं कम नहीं, है इनकी भरमार।
खोजत निकलो एक को, मिल जायेंगे चार।।

२३-८-१९                   ~~~अजय 'अजेय'।

Friday 19 July 2019

बदलू भैया।

बदलू भैया...


मौसम आया बिकने का अब, तुम भी बदलो बोल।
कल तक जिनको गरियाते थे, पीटो उनके ढोल।।
लाल मिर्च को दफ़न करा लो, मुख में मिश्री घोल।
जीत हुई तो पा जाओगे, तुम भी अपना मोल।।

साढ़े चार बरस तक खाना, मुर्गा मछरी-झोल।
कुर्सी बैठ बनाना जी भर, बातें गोल मटोल।।
तब तक फिर नियरा जायेंगे, नये सत्र के पोल।
दिखला देना तुम फिर से तब, नये फिल्म का रोल।।

15 अप्रैल 2019               ~~~ अजय 'अजेय'।

Friday 24 May 2019

दौर चुनावी

दौर चुनावी  ...

तीर चल रहे आरोपों के,
सीना छलनी करते हैं।
सच्चाई का पता नहीं है,
नये नये नित गढ़ते हैं।।

जनता भी गूंँगी बहरी सी,
सब कुछ ही सह लेती है।
जैसे राग बजा दे टीवी,
वैसे ही बह लेती है।।

कौन सही है कौन गलत है,
किस पर हम विश्वास करें।
हर चेहरा यूँ ब-नकाब है,
किससे कैसी आस करें।।

हर मतदाता उलझन में है,
किस पर अपना हाथ धरे।
किसको वह विजयी भव बोले,
मन से किसका साथ धरे।।

आओ मैं उलझन सुलझा दूँ,
मोहर वहीं लगाना तुम।
जो भारत के हित की सोचे,
विजयी उसे बनाना तुम।।

अपनी अपनी गाय रहे सब,
सच्चे की पहचान करो।
जाति धर्म का भेद भुलाकर,
देशी को मतदान करों।।
 20मई 19  ~~~ अजय 'अजेय'।

Saturday 27 April 2019

आ गये चुनाव

आ गये चुनाव...

भाग रहे गाँव-गांँव, नेताजी चुनाव में,
चढ़ हेलिकप्टर, कभी रेल कभी नाव में,
भूले सब सुख, साँस लेते नहीं छाँव में,
दुःख नहीं देते, कुछ छाले पड़े पाँव में।

कभी गोल टोपी,कभी क्रॉस झलकाते हैं,
मीठी-मीठी गोलियों से मन ललचाते हैं,
सच नहीं हो सकें, वो सपने दिखाते हैं,
गिनती न जाने, उसे गणित पढ़ाते हैं।

राम को न मानें, हनुमान गढ़ी चढ़ते,
रूठे को मनाने, कैलाश तक बढ़ते,
अलिफ़ न जाने, तो भी पाँच बार पढ़ते,
अपने भी इल्ज़ाम, दूसरों पे मढ़ते।

हर कोई इनमें है, कुर्सी की ताक में,
खाते खुल जायें, स्विस, थाई- बैंकॉक में,
कोई धाये अमरीका, कोई चीन-पाक में,
जोड़-तोड़ हो रहे हैं, आँख डाल आँख में।

रहना है तुम्हें-हमें साथ साथ गांव में,
बहक न जाना किसी, भेद भरे भाव में,
फँस मत जाना, इन पेंच वाले दांँव में,
समझ से कर लेना, भेद 'गीत' 'काँव' में।

आ गये चुनाव तब, दावतें हैं गाँव में
मलहम पोत रहे, छोटे-छोटे घाव में,
याद करो जिये हम, कितने अभाव में,
देश-हित सर्वोपरि, रखना चुनाव में।

27 अप्रैल 2019 ~~~ अजय 'अजेय'।