(शिवराम जी के निम्नलिखित कटाक्ष के संदर्भ में)
[चौपाई छंद में एक गजल सेवा में।।
अमृत काल बड़ा सुखदाई।
बोलें कुछ नेता ये भाई।।
जबसे सत्ता ये हथियाई।
अपने मुख से करें बढ़ाई।।
साधु और रढुआ भी इसमें।
करवाते ये रोज लड़ाई।।
जनता बैठी देख रही है।
बढ़ा रहे नेता मँहगाई।।
देश प्रेम की इन्हें न चिंता।
नित्य खा रहे स्वयं मलाई।।
चंद वोट की खातिर नेता।
लड़वाते ये भाई-भाई ।।
कह दें शांति सत्य कुछ बातें।
पहुंचा दें घर सी बी आई।।
शिवराम शांती।।]
सत्ता का उपयोग
आपो बच के रहना भाई।
आती होगी सी बी आई।।
हाथ में जिसके सत्ता आई। कौन न करता स्वंय बड़ाई।।
कइयों ने थी भैंस खोजाई।
जब बैठे कुर्सी में भाई।।
उत्सव मनै शहर सैफाई।
जब *भइया* ने सत्ता पाई।।
अपनों से कॉपी जँचवायी। टोटल के नंबर बढ़वाई।।
अब आती है आज रुलाई। भूल गए अपनी चतुराई।।
20/4/23 ~अजय 'अजेय'।
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