Sunday 26 December 2021

किसान और आंदोलन

<(रुचिरा छंद) किसान और आंदोलन थे किसान पर सड़कों पर ही, खेती करते साल गया। किसे पता है इसके पीछे, किस बंदे का माल गया। कितना डीज़ल जला रात दिन, कितना धन बरबाद हुआ। कोई तो बतलाओ यारों, किसका चावल-दाल गया। कौन कौन थे किसके पीछे, खेल कौन था चाल गया। 21/12/21 ~अजय 'अजेय'।>

Thursday 23 December 2021

बदले भाव-आये चुनाव

(महाश्रृंगार छंद)
बदले भाव - आये चुनाव

देख कर के बदले ये भाव।
हैं उठते जन-मन में सवाल।
क्या हो नहीं सकते चुनाव।
हर साल और साल-दर-साल।

याद आ गये गाँव देहात।
भुलाई सारी बिगड़ी बात।
हो रही सौगाती बरसात।
बँट रही है खुल के खैरात।
23/12/21      ~अजय'अजेय'।

कोरोना (ओमीक्राॅन) की दस्तक

(ककुंभ छंद)
कोरोना(ओमीक्राॅन) की दस्तक

लहर तीसरी आने वाली,
है अब ऐसा लगता है।
जनता की आँखों पर पर्दा,
छाया जैसा लगता है।
घूम रहे सब ऐसे जैसे,
छुट्टा भैंसा लगता है।
भूल गये जब अपना कोई,
जाता कैसा लगता है।
21/12/21       ~अजय 'अजेय'।

Tuesday 16 November 2021

रैलियाँ व महामारी

गीतिका छंद
रैलियाँ और महामारी

रोक देनी थीं मगर ये, रोकते नहिं रैलियाँ। 
जुट रहे हैं लोग लाखों, बढ़ रही नित टैलियाँ।।
संविधानिक विवशता की आड़ में सब मौन हैं।
ताक पर रख दी गयी हैं ज्ञान की सब थैलियाँ।।

है कहाँ परवाह किसको, इस सियासी खेल में।
कौन बीमारी लिये है, आज धक्कम-पेल में।।
चुटकियों में बदल सकती, हैं जहाँ धारा कई।
हो रहे हैं खेल घाती वहाँ रेलम-रेल में।।

मौन हैं कानूनविद सब, मौन हैं सब कचहरी।
बाज सी हैं नजर पद पर, बने हैं सब गिलहरी।।
हैं कबूतर से बने बैठे सियासी भेड़िये।
नैन में पाले हुए हैं, ख़ाब सारे सुनहरी।।

29/4/21              ~अजय 'अजेय'।

Thursday 11 November 2021

छठ पूजा पर

(दुर्मिल सवैया छंद)
(1) छठ पूजा पर

पत्नी पति से कहतीं सजना, कब आवत हो छठ आय गयी।
तुम आ न सके पछिले हफ्ते, मन दीपक जोत जराय गयी।
छठ पूजन में नहिं छूट तुहें, दउरा फल, सूप मँगाय लयी।
फटही सरिया नहिं घाट चलूँ, नवकी सरिया ह किनाय लयी।।
10/11/21                             ~अजय 'अजेय'।

(2) बिरह निवेदन 
पत्नी पति से कहती सुनिये, अब आप घरे कब आय रहे।
जस भूलि गए अपने जन को, हमको अस खूब सताय रहे।
जब आय रहे पिछले बरिसौं, मनको तुम खूब लुभाय रहे।
कुछ भूल भई हमसे जदि तो, अब  माफ करो सिर नाय रहे।।

मन आकुल है अब लौटि परो, हम कान धरै लखते रहिया।
करि याद रहे बचवा-बचिया, मन भाय न दूध न ही दहिया।
तुमसे हमरी मुस्कान सजे, तुमसे हरषाय हमार जिया।
तुम जीवन के इन्जन सम हो, हम हैं जिसके पन्चर पहिया।।
11/11/21                       ~अजय 'अजेय'।

Tuesday 5 October 2021

भटकन

(कामिनी/पद्मिनी छंद)
*भटकन*
लोग भटका गये तुम भटकने लगे,
राह में रोज रोड़े अटकने लगे।
जो पता ही न हो फासलों की वजह,
सामने बैठकर बात हो किस तरह।

हाल में तुम सभी रोटियाँ सेंक लो,
जो बने हैं नियम फाड़कर फेंक दो।
बात होगी तभी मान लोगे जभी,
जो न भाये वही राग तुम रेंक दो।

बात कैसे बने सोचते भी नहीं,
बीज कैसे उगे सींचते ही नहीं।
फौज के कारवाँ की कदर ना करो,
पीसफुल आन्दोलन दिखावा करो।
4/10/21 ~अजय 'अजेय'।

तुमने जो होंठों से लगाए थे

तुमने जो होंठों से लगाए थे, हमने वो कप सम्भाल रखे हैं। भेजे जिनमें खत तुमने हमको, लिफाफे सब सम्भाल रखे हैं। पोंछा था माथे के पसीने को, हमने वो सारे रूमाल रखे हैं। और किस तरह इज़हार करें, शौक हमने भी कमाल रखे हैं। सोचा सीधे मुलाकात हो जाये, मगर जालिम ने दलाल रखे हैं। ~अजय 'अजेय'।

Tuesday 31 August 2021

रात ! तू भी न सहारा देगी

*रात ! तू भी न सहारा देगी*

न फ़लक पर कोई चाँद, न ही तारा देगी,
बुरे वक्त में ऐ रात ! तू भी न सहारा देगी।
माना कि आज आँधियों का दौर है जारी,
कल की सहर यकीनन खुश-नजारा देगी।
23/8/21                 ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 4 August 2021

नाटकबाज


नाटकबाज
(चौपाई छंद)

तर्क नहीं जब आता करना,
सबसे बढ़िया दे दें धरना।
बिना बात के भाषण करना,
छननी में जस पानी भरना।।

बुनते रहते ताना-बाना,
इनको बस इल्ज़ाम लगाना।
झाँकें कभी न घर के भीतर,
मान देश का सदा गिराना।।

पल में बहियाँ गले डारते,
भरी सभा में आँख मारते।
मर्यादा की फिकर न इनको,
छीन हाथ से 'मान' फारते।।

सरकारी खरचा करवा दें,
पर संसद को चलने ना दें।
बैठ सायकिल फिरें सड़क पर,
नाटक करने चढ़ें ट्रैक्टर।।
3/8/21       ~अजय 'अजेय'।

Monday 19 July 2021

गाँव में आपसी सहभागिता

चित्र-लेखन
(घनाक्षरी छंद)
*_गाँव की सहभागिता_*

खेत-खलिहान हल बैल व किसान संग,
खुशी भरपूर कभी वो भी तो जमाना था।

घर घर पशु-धन मेहनत वाले तन,
गोबर के खाद वाला देसी कारखाना था।

बसता था भाई-चारा गाँव में ही ढेर सारा,
एक दूसरे के घर खूब आना जाना था।

दु:ख-सुख सब कुछ मिल जुल बाँटते थे,
एक दूसरे का बोझ मिल के उठाना था।
19/7/21      ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 23 June 2021

लापरवाही

लापरवाही
(चौपाई छंद)
 
छूट मिली तो बाहर आने,
केतनो कहिये बात न मानें।
मुख पर सही मास्क न डारें,
घूमें खुल्ला दाँत  चियारें।।

सुने न कोई टोकें कैसे,
लहर तीसरी रोकें कैसे।
बैद-विशारद सब समझावें,
तब्बौ जनता सब बिसरावें।।

आयी थी जब दुसर लहरिया,
मरत रहें जन घरै-दुअरिया।
त्राहि-त्राहि हम करन लगे थे,
गाँठ बाँधि सब धरन लगे थे।।

मिली ढिलाई रास न आवै,
मना करौ पर भीर लगावैं। 
आँखें मूँद करें मनमानी,
तीजी लहर बुलाना ठानी।।
23/6/21    ~अजय 'अजेय'।

Monday 21 June 2021

*पलायन*

चित्र लेखन 
(लावणी छंद)
*पलायन*
अगर अकेले हम होते तो,रुक भी जाते बात न थी।
बच्चे थे घरवाली भी थी,रुपयों की सौगात न थी।।
अपने रूठे सपने टूटे,टूटा ताना-बाना जी।
जिसको हम अपना कहते थे,नगर वही बेगाना जी।।

बहुत हुआ अब रोना-धोना,यहाँ-वहाँ का खाना जी।
अब ना रोको नहीं रुकेंगे,हमको है घर  जाना जी।।
जान लगा कर करी चाकरी,नहीं मिला हर्जाना जी।
जीना हुआ मुहाल शहर में,मिले न मेहनताना जी।।

23/4/21                            ~अजय 'अजेय'।

पूँछ कुत्ते की

(विधाता छंद)
*पूँछ कुत्ते की*

बढ़ रही रोज है गिनती, करोना के मरीजों की।
उठ रही हैं नयी अरथी, पलों पल में अजीजों की।।
मगर कुछ लोग ऐसे हैं, कि जैसे पूँछ कुत्ते की।
खुले मुख हैं निकल आते, नहीं चिन्ता नतीजों की।।

फँसा के पाँव को चलिए, रकाबों का चलन गर है।
ढके रुख ही निकलिये जी, नकाबों का चलन गर है।।
न ही ईनाम ना तमगा, जिसे हासिल करोगे तुम।
वहाँ बचना जरूरी है, उकाबों का चलन गर है।।

(रकाब=घुड़सवार  का पायदान, उकाब=हिंसक पक्षी बाज/चील)
19/4/21                                ~अजय 'अजेय'।

योग

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मेरा योगदान
(श्रृंगार छंद)
*योग*
बनाता है मन को नीरोग।
भगाता है जो तन से रोग।।
नहीं है किसी धर्म का योग।
करें नित इसका सब उपयोग।।

न इससे अपना नाता तोड़।
योग को नहीं धर्म से जोड़।।
योग का तो मतलब ही जोड़
अपना कर इसको रस निचोड़।।
21/6/21     ~अजय 'अजेय'।

Monday 3 May 2021

सिपाही

चित्र लेखन (निश्चल छंद) सिपाही जल हो या थल करते कभी न, वे परवाह। सीमाओं पर डटे रोक कर, अरि की राह।। देखो कैसे छिप कर के हैं, वे तैनात। झेल रहे खतरे चाहे हो, दिन या रात।। 25/3/21 ~अजय 'अजेय'।

होली दोहावली

सभी को होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें---- होली-दोहावली दहन कीजिए भेद सब, इस होली के संग। मिट जायें शिकवे गिले,मिटे आपसी जंग।। प्रेम-रंग रंग दीजिए, सारा भारत देश। बसे स्नेह हर हृदय में, रहे न कोई द्वेष।। 28 मार्च 21 ~अजय 'अजेय '।

महाशिवरात्रि के शिव

*_महाशिवरात्रि के शिव_* (सरसी छंद) मंदिर मंदिर भीर लगी है, शिव जी रहे नहाय। कोई जल से नहलाता है, कोई दूध चढ़ाय। दही लिपाये कोई लेकर, कोई बेर खिलाय। कोई लाया भाँग-धतूरा, कोई शहद चटाय। भोले-भाले भोले बाबा, सबको रहे लुभाय। राजा रंक सभी के भोले, पल में जात रिझाय। सबसे अलग देवता मेरो, अड़भंगी कहलाय। सर पर गंगा चाँद भाल पर, साँप गले लटकाय। 10/03/21 ~अजय 'अजेय'।

मौसम परिवर्तन

कुण्डलिया छंद मौसम परिवर्तन सर्द हवायें कम हुईं, कंबल नहीं सहात। स्वेटर दस्ताने हटे, दोहर लागै रात।। दोहर लागै रात, रजाई धूप सेंकतीं। तेज चाल पर देह,पसीने बूंद फेंकतीं।। मौसम का बदलाव, उड़ाती गर्द बतायें। फागुन में अलोपित, होती शीत हवायें।। 02/03/21 ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 24 March 2021

मुंबई के रखवाले

मुंबई के रखवाले (घनाक्षरी छंद) भर कर जिलेटिन कार खड़ी कर गए, रखवाले घर के ही घर को उड़ाने को। पकड़े गए हैं सब जान फँस गई तब, झूठ पर झूठ अब गढ़े हैं सुनाने को। पद से निकल गए अब हैं बिफ़र गए, डीजीपी जी चले अब राज ये बताने को। एक सौ करोड़ प्रति माह लाओ कहते थे, मजबूर हम भए पद को बचाने को। 23/3/21 अजय 'अजेय'।

Sunday 17 January 2021

सौगात-ए-मरक़ज


*_रूपमाला छंद_*
सौगात-ए-मरक़ज़

देश-हित को ताक पर रख, कर रहे हैं घात।
देश-हित की नीतियों पर, कर रहे आघात।।
बोलिए जी हम उतारें, आरती ले दीप ?
या कि उनकी फितरतों को, दें करारी मात।।

करी विनती और देखा, जोड़ कर के हाथ।
समझते थे हम कि देंगे, वे हमारा साथ।।
तोड़ कर विश्वास भागे, मजहबी  हज़रात।
बाँटते वे फिर रहे हैं, मौत की  सौगात।।

२१/४/२०।   ~अजय 'अजेय'।