Thursday 14 July 2022

शेर पर बवाल

शेर पर बवाल 
(विधाता छंद)

कभी वह मुस्कुराता था, तभी वह शेर होता था।
मक्खियाँ छेड़ जाती थीं, गुफ़ा में बैठ रोता था।।
दहाड़ा है गर्जना कर, वतन का शेर जागा है।
गर्जना से दहल जागा, नयन मूँदे जो* सोता था।।

13/7/22                           ~अजय 'अजेय'।

पानी पानी

(रुचिरा व ताटंक छंद के मिश्रणयुक्त रचना का एक प्रयास)
पानी पानी

जिधर देखिये उधर नगर में,खाली पानी पानी है।
बदहाली के मंजर सच हैं,दावा सब बेमानी है।।
हुये करोड़ों खर्च साल भर,ये सरकारी बानी है।
आई अब बरसात शहर में,पोल सभी खुल जानी है।।

उफ़न रहा है नदियों का जल,नये बने वे बाँध बहे।
कहाँ बह गये संसाधन सब,जिसके बदले नोट गहे।।
किसकी जेब हो गई मोटी,किस पर हैं इल्ज़ाम ढहे।
सरकारी दफ़्तर की फ़ाइल,कितने झूठे बोझ सहे।।
12/7/22                                ~अजय 'अजेय' ।

Thursday 5 May 2022

बेटी के विवाहोपरांत

पड़ा जो डाका मुझ पे, पाई-पाई ले गये,
कुछ केश सँवारे थे, जो नाई ले गये।।
बहूरानी लाये थे, बेटी के भाई ले गये,
बिटिया थी पली नाज से, जँवाई ले गये।।

अब टूटे-फूटे घर में, बस मान बचा है,
पूरे हुए सभी, न अब अरमान बचा है।।
धड़कते दिल संग, तनिक जान बचा है,
एक प्यारा सा खिलौना, ईवान बचा है।।
04/05/22           ~अजय 'अजेय'।

Wednesday 23 March 2022

युद्ध व्यवसायी

(घनाक्षरी छंद) युद्ध व्यवसायी नीति दंश करोना का अभी गया भी नहीं कि देखो, साये युद्ध वाले नभ पर दिखने लगे। बंद किए बैठे थे दुकान हथियारों वाले, झाड़ पोंछ कर बही-खाते लिखने लगे। धूल फाँकने लगी थीं मँडियां करोना में जो, थोप कर युद्ध बोल बोल चीखने लगे। खुद तो न लड़ें पर पीछे हम खड़े कहें, भरती तिजोरियों के मंत्र सीखने लगे। 23/3/22 ~अजय 'अजेय'।

गिरगिटी सपने

(चौपई छंद)
गिरगिटी सपने

कुछ दिन पहले की है बात।
छोड़ गये थे गिरगिट साथ।।
कोई सइकिल पर चढ़ जात।
कोई चला थामने हाथ।।

बदले थे गिरगिट जो रंग।
देख रहे, जनमत हो दंग।।
बहस रहे थे कसते व्यंग।
हुये मुँगेरी सपने भंग।।

10/3/22  ~अजय 'अजेय'।
<10>

होलिका दहन

<(कुण्डलिया छंद)> होलिका दहन <होली का हैप्पी हुई,जल गै जिसके बाल। साजिश सब चौपट भई,फेल दुष्ट की चाल।। फेल दुष्ट की चाल,जल गई बहिना प्यारी। जली बुराई संग श्रृंगारी गहना धारी।। कह अजेय कविराय,न चढ़िये छद्मी डोली। जल जायेंगे ऐसे, जैसे जलती होली।। <18/3/22 ~अजय 'अजेय'।>

Monday 21 March 2022

ग्रामीण संस्कार

चित्र लेखन
(विष्णुपद छंद)
ग्रामीण संस्कार 
आते जाते राही का भी, मान बढ़ाते हैं,
कुटिया को ही हम तो अपने,  महल बनाते हैं।।
कौन पूछता है किसको अब, शहरी महलों में,
हम अंजानों को भी दिल से, गले लगाते हैं।।
12/3/22       ~अजय 'अजेय'।

Monday 10 January 2022

ओमीक्राॅन लहर

<ओमीक्राॅन लहर> <(भुजंगी छंद)> <नहीं हो रहा है हमें कुछ असर, बिना मुख ढके घूमते हैं निडर, गये भूल बीती हुई वो लहर, तभी भान होता गिरें जब गटर। जरा छूट पाई लगे झूमने, पहाड़ी समंदर लगे घूमने, भुला के सिखाये सभी कायदे, लगा कर गले से लगे चूमने। करोना दुबारा पलट आ गया, खतरनाक 'ओमी' कहा है गया, बड़ी तेज गति से कहर ढा रहा, न जाने किधर से किलर आ रहा। 10/1/22 ~अजय'अजेय'।>