Monday 30 March 2020

लाॅकडाउन का असर

लॉकडाउन इंपैक्ट...
(भोजपूरी रचना)

घूमs जनि झारि के अँगोछा,
बलम घरे पोचा लगा लs।
पोचा लगा लs, बाबु पोचा लगा लs ...
कोरोना से सबके बचा लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

कहेलें मोदीजी तनी राखs हो सफ़ाई,
एकइस दिन ले कौनों बाई नाहीं आई।
पानी में डिटोलवा मिला लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

बहियाँ पिराता, हमरी गोड़े आइल मोचा,
लाॅकडाउन कइ दिहलस बड़हन लोचा।
घरे तनि हाथ तूँ बटा लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

करफू लगल बंद भईली बजरिया,
मिली फल, रासन, दवा, दूध, तरकरिया।
फ़ोनवे से सउदा मँगा लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

केहू से ना मिलs, मति हथवा मिलावs,
हमहूँ से दूरे रहs, नियरे न आव आवs।
साबुन से हाथ गजुआ लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

घरहीं में रहs, जनि निकलs तू बहरा।
गली-गली बइठल बा पुलिसे के पहरा।।
हाथ-गोड़ आपन तूँ बचा लs...
बलम जी पोचा लगा लs।

कोरोना से जान तूँ बचा लs...
बलम घरे पोचा लगा लs...
घूमs जनि झारि के अँगोछा,
बलम जी पोचा लगा लs।

३०/०३/२० ~~~ अजय 'अजेय'।

Wednesday 25 March 2020

कोरोना का क्रोध

दोहावली...

झेल रहा जो विश्व है, कोरोना का दंश।
वह कोरोना और ना, है 'करुणा' का अंश।।

मूक जंतुओं को रहे, मानव-दानव भक्ष।
कोरोना बन आ गये, करने 'करुणा' रक्ष।।

चूहे चिमगादड़ रहे, बनते जिनके भोज।
'करुणा' उनको खा गए , पकरि पकरि के रोज।।

रेत रहे थे मुर्ग़ियाँ, नोच रहे थे पाँख।
छट-पट करती आत्मा, रोती भरि-भरि आँख।।

बंद हुये धंधे सभी, जहाँ पके था माँस।
मुख से जब रोटी छिनी, तभी भया अहसास।।

मिल-जुल सब जंतू गये, संत करोना धाम 
तप करने सब लग गये, त्राहि त्राहि करि माम्।।

तिलचट्टे दादुर झिंगुर, मूषक मछरी श्वान।
नतमस्तक होकर खड़े, धारित मन भगवान।।

'करुणा' तब परगट भये, हर्षित होकर नाथ।
वर मुद्रा में उठ गये, माथ जंतु धरि हाथ।।

बोले माँगो वत्स वर, कहहु पीर समुझाय।
हर लूँगा तव पीर सब, होकर अभी सहाय।।

बिलखि कहें सब जन्तु-जन, मानव भूला रीत।
कॉंच चबायें जंतु को, हुए नाथ भयभीत।। 

करुणा जी ने वर दिया, होकर निर्भय शेष।
जाओ घर मैं आ रहा, धरि 'कोरोना' भेष।।

हमने मानव को दिया, जीव-दया का भाव। 
वह अभिमानी हो गया, रखने लगा दुराव।।

मानव गर 'मद' चूर है, खाता दुर्बल जीव। 
नहिं उसकी अब खैर है, हिल जायेगी नीव।।

अमरीका हो रूस हो, या हो इटली, चीन। 
अब उतरुँगा मैं धरा, मानव होगा दीन।।

भारत को भी ज्ञात हो, चेतेगा तो ठीक।
दया-भाव मन में रहे, भोजन राखे नीक।।

पश्चिम पीछे भाग मत, खोकर सकल विवेक।
उनकी अपनी सोच है, तेरी अपनी नेक।।

जीवों पर मत जुल्म कर, मत बन झूठा बीर। 
भोजन तो भरपूर है, धार जीभ पर धीर।।

आया हूँ बन त्रासदी, ले ले मेरी सीख।
नवरात्री से बीस दिन, बाहर ना तू दीख।।

२५/०३/२०                 ~~~ अजय 'अजेय'। 

Sunday 8 March 2020

चित्र लेखन (कुण्डलियाँ छंद)


चित्र-लेखन (कुंडलियाँ)...

गमले का पौधा हरा,दिया सड़क पर रोय।
नफ़रत की आँधी जगी,भाई-चारा खोय।।
भाई-चारा खोय,शहर का खूनी मंजर।
कैसे पनपे पौध,जहाँ दिल ही हों बंजर।।
कह अजेय कविराय,पड़ा है विधि मुँह औंधा।
लखि गलियों के हाल,दुखी गमले का पौधा।।
६/३/२०२०                                 ~अजय 'अजेय'।