चित्र-लेखन
(घनाक्षरी छंद)
चित्र-लेखन
(घनाक्षरी छंद)
बुढ़ापा
बिखरे हैं केश तन में न बल शेष पर,
जीने की ललक कभी साथ नहीं छोड़ती।
मन में जलन नहीं तन पे वसन नहीं,न
पर आँख आशाओं की डोर नहीं तोड़ती।
राशन की बँटनी में सबसे हैं आगे बाबा,
बहू घर बैठ ऐंठ के चाभी मरोड़ती,
बैठे बैठे घर खाली तोड़ रहे रोटियों को,
कर्कश सुर पति से है बात जोड़ती।
23/9/22 ~अजय 'अजेय'।
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