Wednesday 23 June 2021

लापरवाही

लापरवाही
(चौपाई छंद)
 
छूट मिली तो बाहर आने,
केतनो कहिये बात न मानें।
मुख पर सही मास्क न डारें,
घूमें खुल्ला दाँत  चियारें।।

सुने न कोई टोकें कैसे,
लहर तीसरी रोकें कैसे।
बैद-विशारद सब समझावें,
तब्बौ जनता सब बिसरावें।।

आयी थी जब दुसर लहरिया,
मरत रहें जन घरै-दुअरिया।
त्राहि-त्राहि हम करन लगे थे,
गाँठ बाँधि सब धरन लगे थे।।

मिली ढिलाई रास न आवै,
मना करौ पर भीर लगावैं। 
आँखें मूँद करें मनमानी,
तीजी लहर बुलाना ठानी।।
23/6/21    ~अजय 'अजेय'।

Monday 21 June 2021

*पलायन*

चित्र लेखन 
(लावणी छंद)
*पलायन*
अगर अकेले हम होते तो,रुक भी जाते बात न थी।
बच्चे थे घरवाली भी थी,रुपयों की सौगात न थी।।
अपने रूठे सपने टूटे,टूटा ताना-बाना जी।
जिसको हम अपना कहते थे,नगर वही बेगाना जी।।

बहुत हुआ अब रोना-धोना,यहाँ-वहाँ का खाना जी।
अब ना रोको नहीं रुकेंगे,हमको है घर  जाना जी।।
जान लगा कर करी चाकरी,नहीं मिला हर्जाना जी।
जीना हुआ मुहाल शहर में,मिले न मेहनताना जी।।

23/4/21                            ~अजय 'अजेय'।

पूँछ कुत्ते की

(विधाता छंद)
*पूँछ कुत्ते की*

बढ़ रही रोज है गिनती, करोना के मरीजों की।
उठ रही हैं नयी अरथी, पलों पल में अजीजों की।।
मगर कुछ लोग ऐसे हैं, कि जैसे पूँछ कुत्ते की।
खुले मुख हैं निकल आते, नहीं चिन्ता नतीजों की।।

फँसा के पाँव को चलिए, रकाबों का चलन गर है।
ढके रुख ही निकलिये जी, नकाबों का चलन गर है।।
न ही ईनाम ना तमगा, जिसे हासिल करोगे तुम।
वहाँ बचना जरूरी है, उकाबों का चलन गर है।।

(रकाब=घुड़सवार  का पायदान, उकाब=हिंसक पक्षी बाज/चील)
19/4/21                                ~अजय 'अजेय'।

योग

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मेरा योगदान
(श्रृंगार छंद)
*योग*
बनाता है मन को नीरोग।
भगाता है जो तन से रोग।।
नहीं है किसी धर्म का योग।
करें नित इसका सब उपयोग।।

न इससे अपना नाता तोड़।
योग को नहीं धर्म से जोड़।।
योग का तो मतलब ही जोड़
अपना कर इसको रस निचोड़।।
21/6/21     ~अजय 'अजेय'।