चित्र-लेखन
(घनाक्षरी छंद)
*_गाँव की सहभागिता_*
खेत-खलिहान हल बैल व किसान संग,
खुशी भरपूर कभी वो भी तो जमाना था।
घर घर पशु-धन मेहनत वाले तन,
गोबर के खाद वाला देसी कारखाना था।
बसता था भाई-चारा गाँव में ही ढेर सारा,
एक दूसरे के घर खूब आना जाना था।
दु:ख-सुख सब कुछ मिल जुल बाँटते थे,
एक दूसरे का बोझ मिल के उठाना था।
19/7/21 ~अजय 'अजेय'।
No comments:
Post a Comment