तुमने जो होंठों से लगाए थे,
हमने वो कप सम्भाल रखे हैं।
भेजे जिनमें खत तुमने हमको,
लिफाफे सब सम्भाल रखे हैं।
पोंछा था माथे के पसीने को,
हमने वो सारे रूमाल रखे हैं।
और किस तरह इज़हार करें,
शौक हमने भी कमाल रखे हैं।
सोचा सीधे मुलाकात हो जाये,
मगर जालिम ने दलाल रखे हैं।
~अजय 'अजेय'।
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