*पूँछ कुत्ते की*
बढ़ रही रोज है गिनती, करोना के मरीजों की।
उठ रही हैं नयी अरथी, पलों पल में अजीजों की।।
मगर कुछ लोग ऐसे हैं, कि जैसे पूँछ कुत्ते की।
खुले मुख हैं निकल आते, नहीं चिन्ता नतीजों की।।
फँसा के पाँव को चलिए, रकाबों का चलन गर है।
ढके रुख ही निकलिये जी, नकाबों का चलन गर है।।
न ही ईनाम ना तमगा, जिसे हासिल करोगे तुम।
वहाँ बचना जरूरी है, उकाबों का चलन गर है।।
(रकाब=घुड़सवार का पायदान, उकाब=हिंसक पक्षी बाज/चील)
19/4/21 ~अजय 'अजेय'।
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