"मधु" छंद में एक प्रयास :-
वायु विषैल भई इंह भारी।
साँझ सबेर भखैं नर नारी।
दोष कहाँ इसमें सरकारी।
मानत नाहिं, जराइ पुआरी।
रोय रहे शहरी घर-बारी।
पाथर ईंट पिसे धुंइधारी।
साँस न खींच सकैं अब सारी।
खाँसत-ठाँसत बढै़ बिमारी।
25/11/19 ~अजय 'अजेय'।
वायु विषैल भई इंह भारी।
साँझ सबेर भखैं नर नारी।
दोष कहाँ इसमें सरकारी।
मानत नाहिं, जराइ पुआरी।
रोय रहे शहरी घर-बारी।
पाथर ईंट पिसे धुंइधारी।
साँस न खींच सकैं अब सारी।
खाँसत-ठाँसत बढै़ बिमारी।
25/11/19 ~अजय 'अजेय'।
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