शिकवों का दौर...
(संशोधित ९/१०/१९)
शब भर लिखी हमने, शिकवा-ए-फे़हरिश्त,
और होश में आते आते, सहर हो गयी।
फिर टूट के गिरे वो, बाहों में मेरे इस कदर,
फेहरिश्त खुद ही धुल के, बेनज़र हो गयी।।
०९ अक्तूबर १३ ~अजय 'अजेय'।
(संशोधित ९/१०/१९)
शब भर लिखी हमने, शिकवा-ए-फे़हरिश्त,
और होश में आते आते, सहर हो गयी।
फिर टूट के गिरे वो, बाहों में मेरे इस कदर,
फेहरिश्त खुद ही धुल के, बेनज़र हो गयी।।
०९ अक्तूबर १३ ~अजय 'अजेय'।
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