Thursday 5 December 2019

एक बेटी फिर मरी (रजनी छंद)

एक बेटी फिर मरी
(रजनी छंद)

हाल ऐसा हो गया हम सह नहीं पाते।
चाहते हैं हम मगर चुप रह नहीं पाते।
रोज लुटती बेटियों की अस्मिता देखी।
वेदना हिय की किसी से कह नहीं पाते।

निर्भया के पीर से पैदा हुई थी वो।

आन्दोलित हो गयी माँ भारती थी जो।
भूल कर के पीर अपनी वह गयी फिर सो।
कुंभकरणी नींद कैसे आ गयी उसको।

फिर सियासत में जरा सी सुगबुगाहट है।

हैं दिशायें सड़क पर तो भुनभुनाहट है।
एक बेटी फिर मरी तब बौखलाहट है।
सख्त होने में न जाने *क्या रुकावट है।

आ गयी है वो घड़ी जब फैसला हो ये।

जो करें अपराध उनको देश न ढोये।
हों फटाफट फैसले उनके गुनाहों पे।
दोषियों की सूलियों पर देश न रोये।

फाँसियों की डोर झट बँध जाय गरदन में।

हो नहीं देरी विधिक या व्यर्थ क्रंदन में।
पकड़ लायें  आसमाँ से या जहाँ भी हों।
हो मुखर संदेश सारा विश्व-बँधन में।

०३/१२/१९                           ~~~अजय 'अजेय'।

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