दिशा का अंत
(दुर्मिल सवैया)
टुकड़े-टुकड़े कर के दिल के, मन को, तन को, झुलसाय गये।
इनसान नहीं, बलवान नहीं, भगवानहुँ को बिसराय गये।
छण की, पल की, तन की खुशियाँ, हथियावन को पगलाय गये।
खिलती, हँसती, उड़ती चिड़िया, धरि आगहि भूनि के ढाय गये।।
०४/१२/१९ ~~~अजय 'अजेय'।
(दुर्मिल सवैया)
टुकड़े-टुकड़े कर के दिल के, मन को, तन को, झुलसाय गये।
इनसान नहीं, बलवान नहीं, भगवानहुँ को बिसराय गये।
छण की, पल की, तन की खुशियाँ, हथियावन को पगलाय गये।
खिलती, हँसती, उड़ती चिड़िया, धरि आगहि भूनि के ढाय गये।।
०४/१२/१९ ~~~अजय 'अजेय'।
No comments:
Post a Comment