'दिशा' की बात...
(चौपई छंद)
आज उठेगी फिर से लाश।
जीवन है या सूखी घास ?
जिन्ह मर्जी तेहिं फूँक दिया।
हाथ सेंकने की धरि आस।।
तुमको भेजा था उस *द्वार।
पहना कर वोटों का हार।।
बतलाना तुम मेरी बात।
तुम तो भूल गये सब यार।।
बेटी मेरी रोई आज।
पूछे कैसा है यह राज।।
निकली मैं जब घर से पापा।
देखे ताक लगाए 'बाज'।।
बिटिया मुझसे बोली बात।
उस दिन जो अंकल थे साथ।।
उनको पूछो चुप क्यों हैं।
बैठे धरे हाथ पर हाथ।।
१४/१२/१९ ~अजय 'अजेय'।
(चौपई छंद)
आज उठेगी फिर से लाश।
जीवन है या सूखी घास ?
जिन्ह मर्जी तेहिं फूँक दिया।
हाथ सेंकने की धरि आस।।
तुमको भेजा था उस *द्वार।
पहना कर वोटों का हार।।
बतलाना तुम मेरी बात।
तुम तो भूल गये सब यार।।
बेटी मेरी रोई आज।
पूछे कैसा है यह राज।।
निकली मैं जब घर से पापा।
देखे ताक लगाए 'बाज'।।
बिटिया मुझसे बोली बात।
उस दिन जो अंकल थे साथ।।
उनको पूछो चुप क्यों हैं।
बैठे धरे हाथ पर हाथ।।
१४/१२/१९ ~अजय 'अजेय'।
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