Sunday 6 October 2019

चित्र लेखन (विधाता छंद) - दिखावा

विधाता छंद - दिखावा...    👉

(१)
जहाँ सब साफ़ होता है,वहाँ झाड़ू घुमाते हो,
सिर्फ फोटो खिंचाने के,लिए नाटक रचाते हो।
सही करनी सफाई हो,चले आओ पटरियों पर,
लगा अंबार कूड़े का,यहाँ हरगिज़ न आते हो।।

(२)
तमाशा,खेल, ये सारा,दिखाकर फूट लेते हैं,
हिला कर झूठ की कूँची,प्रशंसा लूट लेते हैं।

नहीं हमको शिकायत है किसी की नेक नीयत से,
मगर झूठे को* अदरक की तरह भी कूट देते हैं।।
(*मात्रा पतन)


०५/१०/१९                    ~अजय 'अजेय'।

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