Saturday, 3 May 2025

दीपावली पर्व

दीपावली पर्व


१.(किशोर छंद)


घर के भीतर खूब सफाई, करते हैं। 

मोबाइल पर ज्ञान ढेर हम, भरते हैं। 

हुई साँझ भरपूर पटाखे, फोड़ेंगे। 

पॉलूशन के सारे मानक, तोड़ेंगे।। 


 २.(रास छंद) 


लड़ी सितारे चीनी वाले, झूल गये। 

माटी वाला दीपक लाना, भूल गये। 

जले नहीं दीपक घर के कुम्भारन के। 

चकाचौंध की भेंट मंत्र चढ़, मूल गये।। 

31/10/ 24         ~अजय 'अजेय'।

जान मेरी

 जान मेरी

(गीतिका छंद)


वो कभी जो गैर से थे, जान मेरी हो गये।

छेड़ कर वे तार मन के, अब कहाँ हैं खो गये।

खोजता फिरता ख़यालों में,  सदा रहता उन्हें।

जान मुट्ठी में हमारी, ले दबा कर जो गये।।

24/10/24                 ~अजय 'अजेय'।

सर्दी में स्नान

(आल्हा छंद)

सर्दी में स्नान


कोहरे ने कोहराम मचाया,

नजर न आये गाड़ी-कार।

भई नदारद धूप नगर में,

सर्दी करती चोटिल वार।।

सूख न पाते कपड़े गीले,

भरे पड़े सब रस्सी तार।

दस्तक हुई द्वार पर भोरे,

शायद आया हो अखबार।।


तजें रजाई कंबल कैसे,

जुटे न हिम्मत इतनी यार।

इक-दूजे का चेहरा ताकें,

खोले कौन बाहरी द्वार।।

जैसे तैसे हाथ धो रहे,

मुख को हल्का लिए पखार।

राह देखते सूरज की अब,

आय गया खिचड़ी त्यौहार।।


हिम्मत कर के पहुँच भी गये,

तन को कैसे करें उघार।

डुबकी कैसे लगे गंग में,

सोच रहा मन बारम्बार।।

एक हाथ से नाक दबाई,

हर हर गंगे लई पुकार।।

आलस गायब, सर्दी गायब,

हो जब गंगा की जयकार।।

14/1/25       ~अजय 'अजेेेय'।

विसर्जन


(चित्र लेखन)

(दोहा छंद)

विसर्जन 

लाये थे घर प्रेम से, फेंका नेह बिसार।

भगवन कैसे आँय फिर, हो जब यह आचार।।


पूजा हो जिसकी प्रथम, सजे प्रथम घर द्वार।

उनकी यह अवहेलना, कैसे है स्वीकार।


भेड़चाल कैसी चली, करिये जरा विचार।

जिनको घर लायें सजा, फेंकें  नदी किनार।।

20/10/24                   ~अजय 'अजेय'।

छठि माई

छठि माई

(दिक्पाल छंद)


मिलि करत चची ताई, पावन नहाइ खाई।

कोसी भराय माई, रहना सदा सहाई।।

फल मूल अरु मिठाई, भरि घाट भोर जाई।

सूरज दिये दिखाई, तब अर्घ फिर बिदाई।।


आशीष से नवाजो, बिगड़ी हमार साजो।

कल थी सहाय तुमही, छठि माँ सहाय आजो।।

पहिला अरघ तिहारा, अब होय रही साँझो।

उपवास हुआ निर्जल, घर आनि माँ बिराजो।

31/10/22                     ~अजय 'अजेय'।

Thursday, 13 March 2025

त्यौहारी भाईचारा

त्यौहारी भाईचारा

(निश्चल छंद)


भाईचारे का भइया जी, गाढ़ा रंग।

दिखलाओ ऐसे दुनिया रह, जाए दंग।।

मजहबियों अब मत छेड़ो तुम, विषधर राग।

आओ मिलजुल कर सब खेलें, गायें फाग।।


पाक अगर ईदी सेवई व, है इफ्तार।

तो फिर होली के रंगों से, कैसा खार।।

बने नहीं अब पर्व हमारे, जंगी गंज।

इक दूजे का मान रखें हम, ना  हो रंज।।

13/3/25             ~अजय 'अजेय'।

Wednesday, 5 March 2025

मेरे जानम

 मेरे जानम

(विष्णुपद छंद)


बड़े सुरीले बड़े रसीले, हैं मेरे जानम।

उनके गाने से सजती हैं, गीतों की सरगम।।

उनको सुनने को कानों की, आस तरसती है।

होंठों से उनके हर पल रस धार बरसती है।।

3/3/25                         ~अजय 'अजेय'।

Tuesday, 4 March 2025

न्यू ईयर

 *न्यू ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।


पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।


शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।


बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24       अजय 'अजेय'। ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।।

पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।।

शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।।

बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24                         अजय 'अजेय'।

नोट बनाम वोट

 (प्रदीप छंद)

*नोट बनाम वोट*


ऐरे गैरे नत्थू खैरे, सारे लगे दिखाने नोट।

आसमान के तारे देंगे, दे दो बस तुम हमको वोट।।

समझ बूझ कर चलना भइया, मिलती कदम कदम पर चोट।

इनके झाँसे में मत आना, इनकी नीयत में है खोट।।

17/1/25                         ~अजय 'अजेय'।

Friday, 28 February 2025

काठ की हाँडी (दिल्ली चुनाव)

 *काठ की हाँडी*

(पीयूष निर्झर छंद)


सो गया सपना बिचारे केजरी का।

चढ़ गया ताला हरीसन टेजरी का।

कब तलक ये काठ की हाँड़ी चलाते।

कब तलक ये झूठ की दालें गलाते।।


हैं नहीं पकतीं खिचड़ियाँ बाँस लटकी।

टाँग कर के बीरबल सी दाल मटकी।

खोखले वादे कहाँ तक काम आते।

तीर कब तक गैर के काँधे चलाते।।


10/2/25           ~अजय 'अजेय।

Saturday, 15 February 2025

खेल-तमाशा

 

चित्र लेखन

*खेल-तमाशा*

(महाश्रृंगार छंद)


हिम्मती बाला करती खेल,

सामने इसके लड़के फेल,

समन्वय का है अद्भुत मेल,

संतुलन की यह रस्सी रेल।।


व्यक्ति खास हो या हो आम,

मेहनत से ही बनता काम,

बिन मेहनत के मिले न धाम,

मेहनत से जीवन आराम।।


खोले हाथ जो माँगें भीख,

बाला उन्हें सिखाती सीख,

मेहनत की ही राह सटीक,

मेहनत की तुम धारो लीक।।

13/2/25        ~अजय 'अजेय'।