(चित्र लेखन)
(दोहा छंद)
विसर्जन
लाये थे घर प्रेम से, फेंका नेह बिसार।
भगवन कैसे आँय फिर, हो जब यह आचार।।
पूजा हो जिसकी प्रथम, सजे प्रथम घर द्वार।
उनकी यह अवहेलना, कैसे है स्वीकार।
भेड़चाल कैसी चली, करिये जरा विचार।
जिनको घर लायें सजा, फेंकें नदी किनार।।
20/10/24 ~अजय 'अजेय'।
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