छठि माई
(दिक्पाल छंद)
मिलि करत चची ताई, पावन नहाइ खाई।
कोसी भराय माई, रहना सदा सहाई।।
फल मूल अरु मिठाई, भरि घाट भोर जाई।
सूरज दिये दिखाई, तब अर्घ फिर बिदाई।।
आशीष से नवाजो, बिगड़ी हमार साजो।
कल थी सहाय तुमही, छठि माँ सहाय आजो।।
पहिला अरघ तिहारा, अब होय रही साँझो।
उपवास हुआ निर्जल, घर आनि माँ बिराजो।
31/10/22 ~अजय 'अजेय'।
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