Tuesday, 4 March 2025

न्यू ईयर

 *न्यू ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।


पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।


शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।


बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24       अजय 'अजेय'। ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।।

पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।।

शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।।

बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24                         अजय 'अजेय'।

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