Saturday, 3 May 2025

सर्दी में स्नान

(आल्हा छंद)

सर्दी में स्नान


कोहरे ने कोहराम मचाया,

नजर न आये गाड़ी-कार।

भई नदारद धूप नगर में,

सर्दी करती चोटिल वार।।

सूख न पाते कपड़े गीले,

भरे पड़े सब रस्सी तार।

दस्तक हुई द्वार पर भोरे,

शायद आया हो अखबार।।


तजें रजाई कंबल कैसे,

जुटे न हिम्मत इतनी यार।

इक-दूजे का चेहरा ताकें,

खोले कौन बाहरी द्वार।।

जैसे तैसे हाथ धो रहे,

मुख को हल्का लिए पखार।

राह देखते सूरज की अब,

आय गया खिचड़ी त्यौहार।।


हिम्मत कर के पहुँच भी गये,

तन को कैसे करें उघार।

डुबकी कैसे लगे गंग में,

सोच रहा मन बारम्बार।।

एक हाथ से नाक दबाई,

हर हर गंगे लई पुकार।।

आलस गायब, सर्दी गायब,

हो जब गंगा की जयकार।।

14/1/25       ~अजय 'अजेेेय'।

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