Saturday, 3 May 2025

जान मेरी

 जान मेरी

(गीतिका छंद)


वो कभी जो गैर से थे, जान मेरी हो गये।

छेड़ कर वे तार मन के, अब कहाँ हैं खो गये।

खोजता फिरता ख़यालों में,  सदा रहता उन्हें।

जान मुट्ठी में हमारी, ले दबा कर जो गये।।

24/10/24                 ~अजय 'अजेय'।

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