तन्हाई...
इधर देखता हूँ,
उधर देखता हूँ ...
न जाने कहाँ और
किधर देखता हूँ .
वो आयेंगे कब तक
पता तो नहीं है,
मगर फिर भी
शाम -ओ-सहर देखता हूँ .
लब तो खामोश हैं
दिल भी मायूस है,
फिर भी बैठा किनारे ,
लहर देखता हूँ .
कोइ ख़त है नहीं ,
है न कोई खबर ही ,
मगर फिर भी सूनी
डगर देखता हूँ .
10 अप्रैल 93 ...अजय
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