नेतृत्व
बिलख रही है आज धरा ,
कहाँ है वह मेरा बेटा ?
किसके ऊपर मैं गर्व करूँ,
किसको मानूं अपना नेता।
पोंछेगा कौन मेरे आंसू ,
जख्मों को कौन दवा देगा ?
ये सब कुर्सी के लोलुप हैं,
कोई मेरा गला दबा देगा।
बेटे तो उससे लड़ते हैं ,
जो मां को आँख दिखाता है
ये खुद आपस में गुंथे हुए,
कोइ राह न मुझे सुझाता है।
रिश्तों की क़द्र नहीं इनको,
बापू को कोसा करते हैं
भाई भाई में जंग करा ,
ये अपने झोले भरते हैं।
अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम को
लड़वा करके बाँट दिया ,
मेरे बेटों ने उनसे भी
नीचे गिर करके घात किया।
घर-घर में शोले दहक रहे,
झनकारें हैं तलवारों की ,
भाई-चारे का क़त्ल हुआ ,
आवाजें हैं बँटवारों की।
सूखी ममता की कोख लिए,
भारत माँ आज बिलखती है ,
उस ईश-पुत्र के आने की
यह सूनी राह निरखती है।
21 दिसंबर 97 ...अजय
बेटे तो उससे लड़ते हैं ,
जो मां को आँख दिखाता है
ये खुद आपस में गुंथे हुए,
कोइ राह न मुझे सुझाता है।
रिश्तों की क़द्र नहीं इनको,
बापू को कोसा करते हैं
भाई भाई में जंग करा ,
ये अपने झोले भरते हैं।
अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम को
लड़वा करके बाँट दिया ,
मेरे बेटों ने उनसे भी
नीचे गिर करके घात किया।
घर-घर में शोले दहक रहे,
झनकारें हैं तलवारों की ,
भाई-चारे का क़त्ल हुआ ,
आवाजें हैं बँटवारों की।
सूखी ममता की कोख लिए,
भारत माँ आज बिलखती है ,
उस ईश-पुत्र के आने की
यह सूनी राह निरखती है।
21 दिसंबर 97 ...अजय
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