शोहरत के पीछे...
शोहरतें न होतीं, तो वो गुमाँ भी न होता ,
शोहरतें न होतीं, तो वो गुमाँ भी न होता ,
सोहबतें न होतीं, तो दिल जवाँ भी न होता,
अब क्या कहें आगे, ऐ अजीज़, मेरे यारों ,
मोहब्बतें न होती तो आशियाँ भी न होता।
इंसान ही इंसान का दुश्मन है हो चला,
इंसान जग रहा है पर ज़मीर सो चला,
शोहरत के नशे में है वो मदहोश हो चला,
शोहरत के बियाबाँ मे इंसान खो चला।
शोहरत की चाहत में न जाने क्या क्या किया,
कभी जीते जी मरे, तो कभी मर के भी जिया,
सब कुछ था लुट चुका, जब तक होश में लौटे,
करते रहे सब खुद, दोष किस्मत पे मढ़ दिया।
05 मार्च 2014 ...अजय।
इंसान ही इंसान का दुश्मन है हो चला,
इंसान जग रहा है पर ज़मीर सो चला,
शोहरत के नशे में है वो मदहोश हो चला,
शोहरत के बियाबाँ मे इंसान खो चला।
शोहरत की चाहत में न जाने क्या क्या किया,
कभी जीते जी मरे, तो कभी मर के भी जिया,
सब कुछ था लुट चुका, जब तक होश में लौटे,
करते रहे सब खुद, दोष किस्मत पे मढ़ दिया।
05 मार्च 2014 ...अजय।
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