सज़ा...
इस चश्मे नम को हमने
कुछ यों सज़ा दिया
आंसू तो आ गए मगर
गिरने नहीं दिया .....
इस चश्मे नम को हमने .....
उम्मीद थी हमको कि
वो तो मेरे ही होंगे
पर चल दिए चुपचाप
अपना घर बसा लिया
इस चश्मे नम को हमने .....
वो दिल नहीं था
दर्द का दरिया था मेरे पास
कोई देख ना ले इसलिए
परदा चढ़ा दिया
इस चश्मे नाम को हमने .....
थे कंपकंपाते ओंठ
और कुछ कांपती जुबान
वो पास से गुजरे तो ...
"उफ़" भी दबा लिया
इस चश्मे नम को हमने .....
मिटता नहीं एहसास
उन खुशहाल पलों का
जिन को बेरुखी से
उसने भुला दिया
इस चश्मे नम को हमने .....
19/10/2009 ...अजय
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