ग़ज़ल : दिल के जर्जर दरवाजों को ...
दिल के जर्जर दरवाजों को...धीरे से ही थपकाना
टूट के गिरने की आदत है ...फिर से ये , गिर जाये ना.
चुरा के खुशबू ले जाती है... रोज सबा इस गुलशन से
डरते डरते दिल कहता है ... कोई आंधी आए ना .
किसने छेड़ा राग पुराना...दिल में ये झनकार हुई
अरसा बीता इन पेड़ों पे... कोई कोयल गाये ना .
तूफानों के मंज़र देखे ...हमने कितने याद नहीं
लाख चलायीं थीं पतवारें ...कश्ती साहिल पाए ना .
कह के गए थे फिर आयेंगे...दरवाज़े खोले रखना
राह तकत अँखियाँ पथरायीं कोई मुड़ कर आए ना .
दिल के जर्जर दरवाजों को...धीरे से ही थपकाना
टूट के गिरने की आदत है ...फिर से ये , गिर जाये ना.
17/07/1997 ...अजय
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