माली सयाना...
बादलों के पार शायद ,
है कोई माली सयाना
जानता है वो हमारे
गुलशनों में गुल खिलाना
फिजा की रानाइयां हों
या दिशा तूफ़ान की
जेठ की तपती दुपहरी
बारिशें वरदान की
जानता वह कब कहाँ पर
जानता वह कब कहाँ पर
कैसे कैसे क्या है लाना
बादलों के पार शायद ...
बादलों के पार शायद ...
कब किसे खुशियाँ मयस्सर
गम के साए किसके ऊपर
किसको बाहों में उठा कर
किसको यह धरती दिखा कर
कौन जाने किस घडी में
पेश कर जाए खज़ाना
बादलों के पार शायद...
याद रखना यह सदा तुम
कुछ नहीं बस धूल हैं हम
उसके हाथों डोर दे कर
नाचते हैं छम छमा छम
पुतलियाँ हम उसके घर की
जानता है वह नचाना
बादलों के पार शायद
है कोई माली सयाना
15 मई 2006 ...अजय
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