तनी लाठियाँ
क्यों तनी हैं लाठियाँ
इक दूजे पर बरसने को ?
क्यों खिचीं तलवारें
मासूमों को कलम करने को ?
क्यों गरजते हैं तमंचे
अमन का क़त्ल करने को ?
पहुँचा दो इन लाठियों को
शक्तिविहीन वृद्ध हाथों तक
बन जाएँ जहाँ जाकर ये
सहारा किसी के चलने को
सजा दो इन तलवारों को
करीने से दीवारों पर
न बन पायें सबब अब ये
कोई जीवन मिटाने को
दफ़न कर दो तमंचों को
कहीं ऐसी गहराई में
न उठ पायें दुबारा ये
नफ़रत की आग उगलने को
04/07/2004 ...अजय
No comments:
Post a Comment