Saturday 2 February 2013

तन्हाई...

इधर देखता हूँ,
उधर देखता हूँ ...
न जाने कहाँ और 
किधर देखता हूँ .

वो आयेंगे कब तक 
पता तो नहीं है, 
मगर फिर भी 
शाम -ओ-सहर देखता हूँ .

लब तो खामोश हैं 
दिल भी मायूस है,
फिर भी बैठा किनारे ,
लहर देखता हूँ . 

कोइ ख़त है नहीं ,
है न कोई खबर ही  ,
मगर फिर भी सूनी 
डगर देखता हूँ .

10 अप्रैल 93          ...अजय

No comments:

Post a Comment