Sunday 26 June 2011

Zindagee ?

जिन्दगी 

उलझी हुई जंजीरों का है जाल ज़िंदगी
सुलझा सका न कोई, वो सवाल  ज़िंदगी

कड़ियाँ सभी इसी की हैं, राजा हों या फकीर
ऐसा नहीं जो बाँच ले, माथे की खुद लकीर 
जीना पड़ेगा आपको हर हाल ज़िंदगी...
उलझी हुई जंजीरों का है जाल ज़िंदगी

हम पर हँसा किये थे वो, मजबूरियां जो थीं
जाहिल समझ लिया हमें, और दूरियां रखीं
अब खुद पे आ पडी है तो, बवाल ज़िंदगी... 
उलझी हुई जंजीरों का है जाल ज़िंदगी

हँसने में नहीं हर्ज जब , सब साथ मिल हंसें
शेरों के साथ घुल-मिल के, जब बकरियां बसें 
पानी मिले एक घाट तो..., निहाल ज़िंदगी...
उलझी हुई जंजीरों का है जाल ज़िंदगी

पानी के बुलबुले हैं, जीवन के चार दिन 
हँस खेल कर गुजार लो, रुसवाइयों के बिन
लड़-कट के मत बनाओ, तुम  मुहाल ज़िंदगी...
उलझी हुई जंजीरों का है जाल ज़िंदगी
सुलझा सका न कोई, वो सवाल  ज़िंदगी

 15/11/2006                                       ...अजय 

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