Wednesday 22 June 2011

धुआँ-धुआँ

धुआँ-धुआँ...

जाने इस शहर को... हुआ क्या है 
जिधर भी देखिये... धुआँ सा है.

कितने मंदिर हैं , मस्जिदे हैं, कितने गिरिजा हैं
उनसे निकली हुई दुआ क्या है ?

हर कदम पर यहाँ पे शोले हैं ,
फूँक कर कौन, हवा इनको , दे रहा सा है ?

जो खेलते हैं, लहू से , दिलों के टुकड़ों के  ,
उनके खौफ़नाक, ठिकानों का भी , पता क्या है ?

कितने सुर्ख खूँ से, लिखी हैं, इबारतें इनकी ,
ऐसे मदरसों के , मौलवीयों ने , पढ़ा क्या है ?

कतरा- कतरा, सुलग रहा है यहाँ ,
ऐ हकीमों , तुम्ही कहो, कि अब दवा क्या है ?

कौन रोकेगा आज, बहते माँ के अश्कों को ,
लहू के प्यासे , भाइयों की,  अब रज़ा क्या है ?

जाने इस शहर को... हुआ क्या है 
जिधर भी देखिये... धुआँ सा है.

15/12/1999                     ...अजय 




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