हे मतदाता
(रास छंद)
एक तार से गुँथे हुये तुम रहो जरा।
संगी-साथी कथा जीत की कहो जरा।।
जीव भयानक इस दरिया के वासी हैं।
धार सरित की नाप तोल कर बहो जरा।।
राजनीति के गलियारे ये जंगल हैं।
इस में पग पग पर आयोजित दंगल हैं।।
नीति-हीन दल और अनगिनत निर्दल हैं।
सोम गुरू रवि आज, वही कल मंगल हैं।।
नींव बिना ही चलें उठाने महल यहाँ।
इनकी माटी उनकी टाटी जुटे कहाँ।।
साड़ी टोपी सूट-बूट सब वेष अलग।
बिखरीं गठबंधन की ईँटें जहाँ-तहाँ।।
15/3/24 ~अजय 'अजेय'।
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