नेता जी : विदेशी बोल
(विधाता छंद)
कभी कन्याकुमारी तो, कभी
आसाम जाते हैं।
दुकानें भी मुहब्बत की, गली में वो लगाते हैं।
पहुँचते ही विदेशों में, मगर घर को भुलाते हैं।
भरे मुख से बुराई देश की गा कर सुनाते हैं।।
न जाने कौन सी नजरों से, नेता वो कहाते हैं।
पड़ोसी के यहाँ जाकर, खयाली जो पकाते हैं।
नहीं थकते झुकाने में, घरेलू देश की अस्मत।
घरों से दूर जाकर, झूठ के आँसू बहाते हैं।।
25/9/24 ~अजय 'अजेय'।
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