Saturday 9 February 2013

नेतृत्व

नेतृत्व

बिलख रही है आज धरा , 
कहाँ है वह मेरा बेटा ?
किसके ऊपर मैं गर्व करूँ,
किसको मानूं अपना नेता।

पोंछेगा कौन मेरे आंसू ,
जख्मों को कौन दवा देगा ? 
ये सब कुर्सी के लोलुप हैं,
कोई मेरा गला दबा देगा।
बेटे तो उससे लड़ते हैं ,
जो मां  को आँख दिखाता है
ये खुद आपस में गुंथे  हुए,
कोइ राह न मुझे सुझाता है।

रिश्तों की क़द्र नहीं इनको, 
बापू को कोसा करते हैं
भाई भाई में जंग करा ,
ये अपने झोले भरते हैं।

अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम को
लड़वा करके बाँट दिया ,
मेरे बेटों ने उनसे भी
नीचे गिर करके घात किया।

घर-घर  में शोले दहक रहे,
झनकारें  हैं तलवारों की , 
भाई-चारे का क़त्ल हुआ ,
आवाजें हैं बँटवारों  की।

सूखी ममता की कोख लिए,
भारत माँ आज बिलखती है ,
उस ईश-पुत्र के आने की 
यह सूनी राह निरखती है।

21 दिसंबर 97         ...अजय 

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