तन्हाई की घड़ियों में.......
Monday, 21 March 2022
ग्रामीण संस्कार
चित्र लेखन
(विष्णुपद छंद)
ग्रामीण संस्कार
आते जाते राही का भी, मान बढ़ाते हैं,
कुटिया को ही हम तो अपने, महल बनाते हैं।।
कौन पूछता है किसको अब, शहरी महलों में,
हम अंजानों को भी दिल से, गले लगाते हैं।।
12/3/22 ~अजय 'अजेय'।
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