दीप प्रज्ज्वलन...
इस देश को हम क्या कुछ देंगे,
इसने ही सब कुछ हमें दिया,
फिर भी यदि तुम देना चाहो,
तो रौशन कर दो एक "दिया"।
वह दीप जो हर दिल को दे दे,
कुछ देश-प्रेम रस भरने को,
जिसकी लौ से निकली ऊष्मा,
प्रेरित कर दे मिट- मरने को।
आभा जिसकी फैले ऐसी,
अँधियारे बोलें "त्राहि माम्",
मिट जाये दूरी जन-जन की,
ना रहें "खास", सब बनें आम,
ना ऊँच-नीच का आसन हो,
ना श्वेत-श्याम का भाषण हो,
धरती पर पाँव रहें सबके,
इतना ऊंचा सिंहासन हो।
घर की मिट्टी से दीप बने,
उसमें "पानी" परिपाटी की
जो तेल जले इस दीपक में,
उसमें खुशबू हो माटी की।
जिस माटी मे मिलना सबको,
उस माटी का सम्मान रहे,
हो स्वाभिमान अंतस्तल में,
जाहिर न कोई अभिमान रहे।
हर पुत्र सिपाही बन जाये,
इससे फैले उजियारे में,
ना रहे भेद-भाव कोई,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में।
20 जुलाई 2015 ~~~ अजय।
इस देश को हम क्या कुछ देंगे,
इसने ही सब कुछ हमें दिया,
फिर भी यदि तुम देना चाहो,
तो रौशन कर दो एक "दिया"।
वह दीप जो हर दिल को दे दे,
कुछ देश-प्रेम रस भरने को,
जिसकी लौ से निकली ऊष्मा,
प्रेरित कर दे मिट- मरने को।
आभा जिसकी फैले ऐसी,
अँधियारे बोलें "त्राहि माम्",
मिट जाये दूरी जन-जन की,
ना रहें "खास", सब बनें आम,
ना ऊँच-नीच का आसन हो,
ना श्वेत-श्याम का भाषण हो,
धरती पर पाँव रहें सबके,
इतना ऊंचा सिंहासन हो।
घर की मिट्टी से दीप बने,
उसमें "पानी" परिपाटी की
जो तेल जले इस दीपक में,
उसमें खुशबू हो माटी की।
जिस माटी मे मिलना सबको,
उस माटी का सम्मान रहे,
हो स्वाभिमान अंतस्तल में,
जाहिर न कोई अभिमान रहे।
हर पुत्र सिपाही बन जाये,
इससे फैले उजियारे में,
ना रहे भेद-भाव कोई,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में।
20 जुलाई 2015 ~~~ अजय।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।
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