चर्चाएं हैं...
चर्चाएं हैं हर लब पे, मेरे गाँव तुम्हारे, आने के;
बागों में कलियाँ मुसकाईं, गोकुल के , बरसाने के॥
कान्हाँ जब तुम चले गए थे, साज़ों ने, संगीत भुलाए;
कागा कल मुंडेर पर बोला, कोकिल के सुर, गाने के॥
पेड़ों की सूखी शाखाएँ, अँगड़ाई ले, झूम उठी हैं;
होड़ लगे शाखों में जल्दी, नयी कोंपले, लाने के॥
आज हवाओं में है शामिल, खुशबू तेरे, तन-मन की;
विरहन मन में गुंजन हैं, रस-भरे प्रेम के, गाने के॥
बरखा के बूँदों में भी, तेरे पद-चाप की, आहट है;
तपते मन ने आस जगाए, अपनी प्यास, बुझाने के॥
अब ना कहना श्याम सांवरे, छोड़ के फिर, हमको जाना है;
सहन न होंगे अब हमसे, ये तीर ननद के, ताने के॥
चर्चाएं हैं हर लब पे, मेरे गाँव तुम्हारे, आने के;
बागों में कलियाँ मुसकाईं, गोकुल के , बरसाने के॥
05 जुलाई 15 ...अजय।
संकर्षण जी की कलम के सौजन्य से ....... (आगे ):-
उमड़ रहे हैं नीर नयन में, मेघ गगन में गरजे हैं !
उर की तपती धरती भीगी, मौसम नैन मिलाने के !!
भूत भविष्यत् वर्त्तमान में हर पल साथ 'निभा'उँगी !
स्वप्न देखती रहती हूँ मैं स्वयं 'अजय' बन जाने के !!
चर्चाएं हैं हर लब पे, मेरे गाँव तुम्हारे, आने के;
बागों में कलियाँ मुसकाईं, गोकुल के , बरसाने के॥
कान्हाँ जब तुम चले गए थे, साज़ों ने, संगीत भुलाए;
कागा कल मुंडेर पर बोला, कोकिल के सुर, गाने के॥
पेड़ों की सूखी शाखाएँ, अँगड़ाई ले, झूम उठी हैं;
होड़ लगे शाखों में जल्दी, नयी कोंपले, लाने के॥
आज हवाओं में है शामिल, खुशबू तेरे, तन-मन की;
विरहन मन में गुंजन हैं, रस-भरे प्रेम के, गाने के॥
बरखा के बूँदों में भी, तेरे पद-चाप की, आहट है;
तपते मन ने आस जगाए, अपनी प्यास, बुझाने के॥
अब ना कहना श्याम सांवरे, छोड़ के फिर, हमको जाना है;
सहन न होंगे अब हमसे, ये तीर ननद के, ताने के॥
चर्चाएं हैं हर लब पे, मेरे गाँव तुम्हारे, आने के;
बागों में कलियाँ मुसकाईं, गोकुल के , बरसाने के॥
05 जुलाई 15 ...अजय।
संकर्षण जी की कलम के सौजन्य से ....... (आगे ):-
उमड़ रहे हैं नीर नयन में, मेघ गगन में गरजे हैं !
उर की तपती धरती भीगी, मौसम नैन मिलाने के !!
भूत भविष्यत् वर्त्तमान में हर पल साथ 'निभा'उँगी !
स्वप्न देखती रहती हूँ मैं स्वयं 'अजय' बन जाने के !!
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