यादें
उम्र की इस दहलीज पर
अक्सर सोचता हूँ
कि सफ़र का आख़िरी दौर
कि सफ़र का आख़िरी दौर
कितना एकाकी व तनहा है ...
तभी खयालों की आंधी
आकर झकझोर जाती है
और मैं अतीत की यादों से
स्वयं को घिरा पाता हूँ ...
कुछ मीठी, कुछ खट्टी,
कुछ विशिष्ट इन्द्रधनुषी
और कुछ साहित्य के ...
नौ रसों में सराबोर सी
यादों के संग फिर से
जीवंत हो उठता हूँ ...
आगामी सफ़र के लिए
यह मान कर कि मैं
तनहा कहाँ हूँ ...
यादें मेरी संगिनी हैं ...
अंतिम पड़ाव तक
क्या इन्हें मैं भूल सकता हूँ ...
जब तक जीवन है..?
०४ जुलाई ०४ ...अजय
यकीनन ...यादें जीवंत कर देतीं हैं हमें ....जीवन के अगले पड़ाव के लिए ...!!
ReplyDeleteसुंदर मर्मस्पर्शी रचना ...बधाई एवं शुभकामनायें..!!