Thursday 4 August 2011

विकास या पतन...

विकास ?... या पतन !




सहरी चमक दमक में, ढेबरी भुला गइल,
चान मामा के अँजोरिया, जाने कहाँ गइल।


प्लास्टिक के बन में हेराई गइली गगरी
कुशन की गद्दा से, दबाई गइली गुदरी 

फैसन की बनर-दौड़ में...(२),
चुनरी भुला गइल...
चान  मामा के अँजोरिया...


बैला बिकाइल, ट्रैक्टर से होला दँवरी
गाय  ना  पोसाली, नकली दूधवा के फैक्टरी
लाख के मिठाई...(२), 

जहरी बिका गइल...
चान मामा के अँजोरिया...

टोपियन की दौड़ में, भुलाई गइली पगरी,
सूटवन की सामने, लजाये लगली सदरी,
कान फारे डीजे(DJ)...(२), 

कजरी भुला गईल...
चान मामा के अँजोरिया...

गाँव के उजारि के, आबाद भइली नगरी,
हाईवे सँवारे के, वीरान कईलें डगरी,
बिजुरी से जरे लाश...(२),

लकड़ी भुला गइल...
चान मामा के अँजोरिया...


पूत कहीं गइलें, अपनी राहें गइली धियरी,
चिठिया भुलाइल, आ भुलाई गइली पतरी,
दफ्तर  की गर्लफ्रेंड में...(२), 

मेहरी भुला गइल...
चानन मामा के अँजोरिया... जाने कहाँ गइल
                              
                             ~अजय 'अजेेेय'

2 comments:

  1. This one is simply superb!!! Beautiful!!! Bhasha par aapki behtareen pakad hai!

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  2. Thursday, 4 August 2011EK BHOJPOORI RACHNA
    विकास ?... या पतन !




    सहरी चमक दमक में, ढेबरी भुला गइल
    चान मामा के अँजोरिया, जाने कहाँ गइल

    प्लास्टिक के बन में हेराई गइली गगरी
    कुशन की गद्दा से, दबाई गइली गुदरी
    फैसन की बनर-दौड़ में.....(२), चुनरी भुला गइल
    चान मामा के अँजोरिया,.....


    गंवई परिवेश की याद दिलाती रचना.... दिल को छू गई....

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