दर्द से नाता
कितना गहरा हमारा नाता है ...
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
तिनका तिनका जुटा के लाये हम ...
बन के बवंडर वो चला आता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
सर्दियाँ गुजर गयीं ठिठुरते हुए ...
गर्मियों में मुझे लिहाफ वो उढाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
जख्म सूखें भी तो सूखें कैसे ...
तीखे नाखून वो दिखाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
रतजगे हमने किये जिनकी नींदों के लिए ...
वो ही मेरे घर को लूटे जाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
जियेगा वो भी चैन से कैसे...
जो हमें इस क़दर रुलाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है
१९अप्रैल २००८ ...अजय
very nice. saras lekhan ke lie aapka abhar.
ReplyDeleteसुशीला जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद
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