आजादी
तूँने हमको क्या दिलवा दी ...
बापू यह कैसी आजादी
पूछ रहे हैं दीन-हीन जन
पूछ रहे हैं दुखियारे मन
पूछ रहे हैं बागीचे-वन
तूँने हमको क्यों दिलवा दी , बापू यह ऐसी आजादी ?
जिनको चलना आगे आगे
वे पैसों के पीछे भागे
टूटे नैतिकता के धागे
घर घर में है आग लगा दी , बापू यह कैसी आजादी ?
हक़ की बात करे हर कोई
जिम्मेदारी नहीं है कोई
माँ बहनों ने अस्मत खोई
हालत देख आत्मा रोई
दोषी छुट्टे घूम रहे हैं ...
निर्दोषी को जेल दिला दी , बापू यह कैसी आजादी ?
शिष्य गुरु से अकड़ पड़े हैं
भाई भाई झगड़ पड़े हैं
पति पत्नी में रगड़ पड़े हैं
रथ के पहिये जकड़ पड़े हैं
जाने कैसी ग्रीस लगा दी , बापू यह कैसी आजादी ?
तूँने हमको क्यों दिलवा दी , बापू यह ऐसी आजादी ?
... अजय
अजय जी ,अच्छा लिखा है आपने .... शुभकामनायें !
ReplyDeleteअच्छी और सटीक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
मार्ग दर्शन के लिए आप सब का हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteDesh jis badqismati se gujar raha hai... uska sajeev chitran... Badhaai!!! Aisi Aazaadi!?!?! Ek Yaksh prashn ban kar rah gaya ho jaise...
ReplyDeletebahut achhee
ReplyDeleteaur
prabhaavshali prastutii ...
शुक्रिया आपका..उत्साहवर्धन के लिए...दानिश जी
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