मेरी चाँदनी ...
हम चाँद पर जाने को यूँ बेताब बैठे हैं,
जाने कहाँ है रह गयी वो चांदनी मेरी।
तन्हाइयों में जब भी मैं निकला हूँ सैर को,
ख़यालात बन के साथ चली जिन्दगी मेरी।
पेशानियों पे जब भी पसीना मेरे छलका,
आँचल लिए देखा उसे है साथ में खड़ी।
मैं उससे लड़ता हूँ , कभी वो मुझसे झगड़ती,
इसी धूप-छाँव से है जिन्दगी हरी- भरी।
खामोश से लबों से जब भी उसको पुकारा,
हाज़िर हुयी सब तोड़ कर लाजों की हथकड़ी।
उसने मेरे वजूद को हर हाल में थामा,
कैसे उसे विदा कहूँ ...वह सांस है मेरी।
03 जुलाई 13 ...अजय
हम चाँद पर जाने को यूँ बेताब बैठे हैं,
जाने कहाँ है रह गयी वो चांदनी मेरी।
तन्हाइयों में जब भी मैं निकला हूँ सैर को,
ख़यालात बन के साथ चली जिन्दगी मेरी।
पेशानियों पे जब भी पसीना मेरे छलका,
आँचल लिए देखा उसे है साथ में खड़ी।
मैं उससे लड़ता हूँ , कभी वो मुझसे झगड़ती,
इसी धूप-छाँव से है जिन्दगी हरी- भरी।
खामोश से लबों से जब भी उसको पुकारा,
हाज़िर हुयी सब तोड़ कर लाजों की हथकड़ी।
उसने मेरे वजूद को हर हाल में थामा,
कैसे उसे विदा कहूँ ...वह सांस है मेरी।
03 जुलाई 13 ...अजय
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