मैं-एक चिराग...
क्या इसमे कसूर मेरा है
अगर चिरागों तले अंधेरा है
शब भर जलता रहा रोशनी के लिए
मेरी मंज़िल तो बस सवेरा है
मुझ मे लहू जलता रहा
पावन तेल सा बनकर
हासिल क्यों नहीं होगा
किस्मत से जो मेरा है
अगर मैं बुझ भी जाऊँ तो
मुझे तुम भूल मत जाना
तेरी यादों के सहलाने से
जी उठेगा, जिन्न मेरा है
06 जुलाई 13 ...अजय
क्या इसमे कसूर मेरा है
अगर चिरागों तले अंधेरा है
शब भर जलता रहा रोशनी के लिए
मेरी मंज़िल तो बस सवेरा है
मुझ मे लहू जलता रहा
पावन तेल सा बनकर
हासिल क्यों नहीं होगा
किस्मत से जो मेरा है
अगर मैं बुझ भी जाऊँ तो
मुझे तुम भूल मत जाना
तेरी यादों के सहलाने से
जी उठेगा, जिन्न मेरा है
06 जुलाई 13 ...अजय
No comments:
Post a Comment