गुमान ...
मुझे गुमान था ...कि मैं ही मैं हूँ
"मय" उतरी तो जाना कि सिर्फ मैं ही मैं हूँ।
दूर तलक नजर गई, तो कोई करीब न था
थामना चाहा जब एक हाथ, तो वो नसीब न था।
झाँका भीतर तो बस,...एक अकेलापन था
गुमान जिसका था, खुदा ही जाने कि, क्या फ़न था।
पत्ता हूँ टूटा, .....आज मैं शाख का अपनी
गुनाह इतना, कि मैं हरा नहीं, मुझमें पीलापन था।
अब... अपने पीलेपन को धोना चाहता हूँ
मैं आज अपने... " मैं " को खोना चाहता हूँ,
पर नहीं मिलता वो निर्मल जल कहीं अब,
जिसमें मैं खुद को .......भिगोना चाहता हूँ।
20/21 मई 13 .......अजय
मुझे गुमान था ...कि मैं ही मैं हूँ
"मय" उतरी तो जाना कि सिर्फ मैं ही मैं हूँ।
दूर तलक नजर गई, तो कोई करीब न था
थामना चाहा जब एक हाथ, तो वो नसीब न था।
झाँका भीतर तो बस,...एक अकेलापन था
गुमान जिसका था, खुदा ही जाने कि, क्या फ़न था।
पत्ता हूँ टूटा, .....आज मैं शाख का अपनी
गुनाह इतना, कि मैं हरा नहीं, मुझमें पीलापन था।
अब... अपने पीलेपन को धोना चाहता हूँ
मैं आज अपने... " मैं " को खोना चाहता हूँ,
पर नहीं मिलता वो निर्मल जल कहीं अब,
जिसमें मैं खुद को .......भिगोना चाहता हूँ।
20/21 मई 13 .......अजय
गहन और हृदयस्पर्शी भाव ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें .
Sach! Jab haath thamna chahte hain to koyi qareeb nahee hota!
ReplyDeleteBehad sundar rachana!