Thursday, 13 March 2025

त्यौहारी भाईचारा

त्यौहारी भाईचारा

(निश्चल छंद)


भाईचारे का भइया जी, गाढ़ा रंग।

दिखलाओ ऐसे दुनिया रह, जाए दंग।।

मजहबियों अब मत छेड़ो तुम, विषधर राग।

आओ मिलजुल कर सब खेलें, गायें फाग।।


पाक अगर ईदी सेवई व, है इफ्तार।

तो फिर होली के रंगों से, कैसा खार।।

बने नहीं अब पर्व हमारे, जंगी गंज।

इक दूजे का मान रखें हम, ना  हो रंज।।

13/3/25             ~अजय 'अजेय'।

Wednesday, 5 March 2025

मेरे जानम

 मेरे जानम

(विष्णुपद छंद)


बड़े सुरीले बड़े रसीले, हैं मेरे जानम।

उनके गाने से सजती हैं, गीतों की सरगम।।

उनको सुनने को कानों की, आस तरसती है।

होंठों से उनके हर पल रस धार बरसती है।।

3/3/25                         ~अजय 'अजेय'।

Tuesday, 4 March 2025

न्यू ईयर

 *न्यू ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।


पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।


शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।


बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24       अजय 'अजेय'। ईयर*

न जाने इसमें नया क्या है।

एक नंगा नाच, हया क्या है।।

पागल हुए जा रहे सब क्यूँ है।

क्या आया और गया क्या है।।


शबाबोशराब भर गिलास है।

किस बात का ये उल्लास है।।

शोर में कौन किसको सुनता है।

ये अपनी वो,अपनी धुनता है।।


न जाने क्या हो जाता आधी रात को।

समझता कोई भी नहीं इस बात  को।।

बस कुछ अंक भर बदल जाते हैं।

सुबह हम खुद को वहीं खड़ा पाते हैं।।


दरअसल कल और आज में

कुछ भी नहीं नया है।

वहम है ये हमारे मन का, वरना नया क्या भया है।

....कुछ  भी तो नहीं

31/12/24                         अजय 'अजेय'।

नोट बनाम वोट

 (प्रदीप छंद)

*नोट बनाम वोट*


ऐरे गैरे नत्थू खैरे, सारे लगे दिखाने नोट।

आसमान के तारे देंगे, दे दो बस तुम हमको वोट।।

समझ बूझ कर चलना भइया, मिलती कदम कदम पर चोट।

इनके झाँसे में मत आना, इनकी नीयत में है खोट।।

17/1/25                         ~अजय 'अजेय'।